मन ने ली अंगडाई।
वेदना की पीर
हो गया अधीर देख
खींची मस्तक पर रेख
बात किसने बताई ?
कोलाहल क्यूँ भीतर जगा
फूटा ज्यों ज्वाला मुखी
स्तब्ध कोई ठहर गया
नीर हिम-सा ठहर गया
मति किसने भरमाई ?
सोया मन जागा है
अंधियारा भागा है
या कहीं क्षितिज में
वर्षा के स्वागत को
आकाश विधुत कौंधी
क्या वर्ष रितु आई ?
प्रणय निवेदन का
स्वीकार-अस्वीकार
करने से पूर्व ही
मन अंकुर फूटा
तरूवर का फल अभी
दृश्यमान कहीं नही
काहे प्रियतमा लज्जाई ?
जंगल मे मोर नाचा
गाँव शहर शोर मचा
बचपन का अवसान
सोया मन शैतान
मौसम भी ठहर गया
सागर भी लहर गया
जीवन मॆ अनायास
छाया है मन उल्लास
ना जाने किस दिशा से
तरूणाई आई .. तरुणाई आई।
मन ने ली अंगडाई।
वेदना की पीर
हो गया अधीर देख
खींची मस्तक पर रेख
बात किसने बताई ?
कोलाहल क्यूँ भीतर जगा
फूटा ज्यों ज्वाला मुखी
स्तब्ध कोई ठहर गया
नीर हिम-सा ठहर गया
मति किसने भरमाई ?
सोया मन जागा है
अंधियारा भागा है
या कहीं क्षितिज में
वर्षा के स्वागत को
आकाश विधुत कौंधी
क्या वर्ष रितु आई ?
प्रणय निवेदन का
स्वीकार-अस्वीकार
करने से पूर्व ही
मन अंकुर फूटा
तरूवर का फल अभी
दृश्यमान कहीं नही
काहे प्रियतमा लज्जाई ?
जंगल मे मोर नाचा
गाँव शहर शोर मचा
बचपन का अवसान
सोया मन शैतान
मौसम भी ठहर गया
सागर भी लहर गया
जीवन मॆ अनायास
छाया है मन उल्लास
ना जाने किस दिशा से
तरूणाई आई .. तरुणाई आई।
मन ने ली अंगडाई।
badhaaee ke patra hain aap.
ReplyDeleteसकुचाया सा, लजाया सा..
ReplyDeleteवाह, ितनी सुंदर कविताई
ReplyDeleteजैसे यौवन किी अंगडाई ।
जीवन में अनायास
छाया है मन उल्लास
न जाने किस दिशा से तरुणाई आई
मन ने ली अंगड़ाई
वाह वाऽह ! क्या बात है
परमजीत सिंह जी
बेहतरीन !
खूबसूरत और सार्थक रचना !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
आपका ब्लॉग यहाँ शामिल किया गया है । समय मिलने पर अवश्य पधारें और अपनी राय से अवगत कराएँ ।
ReplyDeleteब्लॉग"दीप"