Wednesday, March 21, 2007

कवितांजली

गज़ल

जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।

दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।

दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।

हमें भेजनें वाले थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं ।



मुक्तक

जलेगी शंमा जो परवाने भी आएंगें
आपके लिए साकि हम भी संग गुनगुनाएगें
रात कितनी है बाकि किसी को खबर नही-
सहर होने तलक शायद ही ठहर पाएंगें ।


जिस राह पर चले हम, उसपर वीरांनियाँ हैं,
यहाँ हरिक की, अपनी-अपनी कहानियाँ हैं।
हसरत थी इस दिलको, कोइ रह्बर मिलेगा-
इसी ख्वाइशमें यहाँ गई कितनी जवानियाँ हैं


अकेला

हर चीज़ बिखर जाती है यहाँ

इस वक्त की जालिम ठोकर से

तुम झरना अपनें को मानों

पर रहते हो बस पोखर से।

जो एक जगह पर खड़ा-खड़ा

मोसम की मार से सूख गया

क्षण-भर मे खोता है खुद को

जब साँस का डोरा टूट गया।

फिर क्यूँ ना तज नफरत को इस

दिल मे ये प्यार सजाते नही

इन सपनों को नयनों मे भर

इक प्यार की दुनिया बसाते नही।

चुपचाप से क्यूँ यूँ बैठे हो

संग मेरे तुम क्यों गाते नही

ये वक्त गुजर जाए ना कहीं

बीते पल लौट के आते नही ।

मै भी ना यहाँ कल होऊंगा

तुम भी ना यहाँ रह पाऒगे

मिलकर बैठे तो झूम लेगें

व्यथित अकेले गाऒगे।


नया सवेरा

अनायास होता है सब कुछ

हम तकते रह जाते हैं

कोई अन्धेरा कहीं से निकल

हम पर लिपट जाता है

स्वयं से जन्मा ये अन्धकार

अब स्वयं को ही डराता है

मेरे मन

तुम अब अन्धेरे की बात मत करना

ये शनै-शनै मिट जाएगा

क्यूँकि कोई रात

कितनी भी काली या भयानक हो

रात के बाद

नया सवेरा आएगा ।

बीते साल

एक-एक कर पत्ते टूटेगें।

जानते हुए भी क्या

उस वृक्ष के सम्बंध

हमसे छूटेगे?

नही...नही

मुझे भूलने दो

किसी भी प्रश्न का उत्तर

मैं ना दे पाऊंगा ।

एक प्रश्न बन कर आया था

प्रश्न बना चला जाऊंगा ।

यदि तुम्हें उत्तर मिल जाए कभी

मुझे भी बताना।

मेरे बीते साल

मुझे मिल जाएगें

जिन्हें मै चाहता था

सजाना ।

जीवन-चक्र

सुबह

आँखें खोली

किसी ने एक वृत

मेरे आगमन से पूर्व बनाया

और मुझ से कहा-

इस वृत की रेखा पर दोडों

और इस का अन्त खोजों ।

अब मैं इस वृत की रेखा पर

और मोसम

मुझ पर दोड़ता है ।



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