Sunday, May 16, 2010

गर्मीयां......


पेड़ की ओट में
अपने बच्चों को समेटती
इन गर्म हवाओं और लू की मार सहती
वह गरीब औरत
जो राजधानी मे
पेट भरने को आई थी
परिवार के साथ...
सोच रही होगी-
इस पूरी गर्मी को....
मेरे कितने बच्चे देख पाएगें?
कितने वापिस गाँव जाएगें?
...

16 comments:

  1. बेशक , ये गर्मी जान लेवा है।
    दुखद परिस्थितियां ।

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  2. main to yahee praarthnaa karungaa ki wah apne saare bachche waapas gaanv le jaa peeye !

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  3. बहुत बढ़िया रचना ...धन्यवाद.

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  4. मार्मिक...चित्र खुद आपकी कविता कह रहा है.

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  5. heart rendering, very mournful

    http://madhavrai.blogspot.com/

    http://qsba.blogspot.com/

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  6. अत्यंत मार्मिक व्यथा कथा.
    यही सच है

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  7. बहुत ही मार्मिक चित्र, चित्र को कविता.
    धन्यवाद

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  8. माँ,मर्म और मार्मिक पोस्ट

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  9. बहुत ही भावपूर्ण रचना , देश की बदहाली और नक्सलवाद के कारणों को बता रही है .

    Mrityunjay Kumar

    S/o Madhav

    http://madhavrai.blogspot.com

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  10. दर्द को खूब उकेरा शब्दों में आपने जी।

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  11. दिल छू लेने वाली रचना है.बधाई...

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