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Sunday, March 2, 2008

मुक्तक माला-११



आज तुम्हारा टूटा दिल फिर जोड़ेगें।
हर तूफा का रूख मिलकर मोड़ेगें।
क्यूँ अपने से शिकायत है तुम्हें,
दोस्त कहा है अब साथ ना छॊड़ेगें।

कौन सदा साथ रहता है यहाँ आप जान जाएगें।
कौन धारा बिन सहारों के बहता है, यहाँ ना पाएगें।
ऊपर चढना है,तो शर्म कैसी अपनों से करनी,
उन के सिर पाँव रख मंजिल पहुँच जाएगें।

यही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
वफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।

4 comments:

  1. यही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
    वफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
    कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
    हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।


    bahut sahi bahut badhiya

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  2. बेहतरीन मुक्तक..आनन्द आ गया.

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  3. यही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
    वफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
    कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
    हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।

    bahut sahi likha hai aapne!

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  4. अपने ब्लॉग पर आपकी स्माईली का धन्यवाद कहने आई हूँ :)
    आपकी पन्क्तियाँ सच कह रही हैं...

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