हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Sunday, March 2, 2008
मुक्तक माला-११
आज तुम्हारा टूटा दिल फिर जोड़ेगें।
हर तूफा का रूख मिलकर मोड़ेगें।
क्यूँ अपने से शिकायत है तुम्हें,
दोस्त कहा है अब साथ ना छॊड़ेगें।
कौन सदा साथ रहता है यहाँ आप जान जाएगें।
कौन धारा बिन सहारों के बहता है, यहाँ ना पाएगें।
ऊपर चढना है,तो शर्म कैसी अपनों से करनी,
उन के सिर पाँव रख मंजिल पहुँच जाएगें।
यही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
वफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।
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यही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
ReplyDeleteवफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।
bahut sahi bahut badhiya
बेहतरीन मुक्तक..आनन्द आ गया.
ReplyDeleteयही द्स्तूर है अब जमाने का यारों।
ReplyDeleteवफा प्यार तुम जितना भी पुकारो।
कौन कब कहाँ बदले है रंग गिरगिट-सा,
हम भी उसी जमानें की पैदाईश है प्यारो।
bahut sahi likha hai aapne!
अपने ब्लॉग पर आपकी स्माईली का धन्यवाद कहने आई हूँ :)
ReplyDeleteआपकी पन्क्तियाँ सच कह रही हैं...