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Monday, January 25, 2010

गज़ल


                            (नेट से साभार)

आज फुर्सत मे बैठ कर कुछ गजलें सुन रहा था.."तुम इतना क्यूं मुस्करा रहे हो.." इसी को सुनने के बाद गजल लिखने बैठा और ये गजल बना ली....। इस मे उस गजल की झलक भी नजर आएगी....लेकिन फिर भी लिख दी....। जब गजल कि अंतिम पंक्तियां लिखनें लगा....तो सच्चाई अपने आप सामने आ गई..ये पंक्तियां कहीं बहुत गहरे से निकल कर सामने आ गई..हैं ...आप भी देखे....।
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मुस्कराने की नही बात क्यूँ मुस्करा रहे हो।
कुछ बोलते नही , हमको बहका  रहे हो।

खुशी होती गर कोई, बाँट तुझसे लेते,
क्यूं कर मुझको ऐसे, तुम सता रहे हो।

बात कुछ हुई है , चुभ रही है तुम को।
चुप रह कर मुझको , पराया बना रहे हो।

आईना भी मुझको अब , कुछ नही बताता,
लगता है ये भी मुझको, तुझ से मिल गया हो।


कहने को दिल की बातें, हम आज कह रहे हैं,
परमजीत दूसरो के ख्यालों को,अपना बता रहे हो।

Monday, January 18, 2010

ये कैसी जिन्दगी है........


अपनी आवाज भी मुझ को, सुनाई नही देती।
ये कैसी जिन्दगी है जिन्दगी, दिखाई नही देती।

नशा है जाम का जिस मे बहक चल रहे है सब,
होश मे मुझको यहाँ जिन्दगी दिखाई नही देती।

हरिक पल मर रहा है जिन्दगी का सामने मेरे,
पकड़ना दूर,मुझको संग भी, चलने नही देती।

खुदा ने दी, खुदा के वास्ते ही थी ये जब जाना,
परमजीत मौत मौहलत जिन्दगी को नही देती।

Monday, January 11, 2010

कुछ क्षणिकाएं


ठंड बहुत है....
इसी लिए सरकार ने
गरीबों के लिए
ठंड से बचाने के लिए
यह जुगत लगाई है -
महँगाई की आग जलाई है।
*******************

जब कोई गलत आदमी
सही बात बोलता है....
आदमी को नहीं 
उस की बात को 
मान देना चाहिए।
यदि यह तुम्हें 
स्वीकार नही...
अपने को -

पहचान लेना चाहिए।
****************

मैं हमेशा चाहता था....
मेरा मालिक-
मेरे हर प्रश्न का उत्तर दे।
लेकिन ...
वह सदा रहता मौन था।
आज जब -

मैं मालिक बन गया हूँ
नही जानता....
प्रश्न पूछने वाला कौन था ?
******************

Monday, January 4, 2010

दिल की बातें.........




दिल की बातों का असर अब नही होता।
दुसरो के लिए कोई यहा अब नही रोता।

जिन्हें सदा देख कर , मुस्कराते थे हम,
उनकी तस्वीर है ये, यकी अब नही होता।

खेल है किस्मत का या कहर है उनका,
खुदा भी मेहरबा हम पर, अब नही होता।

अब दिल की बातों को सुनना छोड़ दिया,
परमजीत दिल सबके पास अब नही होता।

Sunday, January 3, 2010

अब यह चुप्पी तोड़ दो



तुम से किसने कहा-
तुम चुप रहो....
अपने को संभालो
मत ऐसे बहो।


तुम्हारा चुप रहना ही
कमजोर बनाता है।
दूसरो की
हिम्मत बढ़ाता है।


जरा अपनी तरफ देखो-
तुम भी ठीक वैसे ही हो
जैसा वह है..
फिर किस बात का भय है ?


बस! गलत का साथ
इस लिए मत दो..
क्योकि वह वही है
जो तुम हो...
ऐसे रोने वालो के साथ
तुम मत रो ।
गलत का साथ दे
हम भी
कमजोर हो जाते हैं।
कोई रास्ता नजर नही आता..
हम चुप हो जाते हैं।


चुप कमजोर भी रहता है
और झूठा भी..
अपनों से नाराज
और रूठा भी...।
इस लिए अपने को
सही से जोड़ लो।
अब यह चुप्पी तोड़ दो।