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Monday, December 2, 2013

ओ मेरे रामा,,,,



चलते चलते
कितनी दूर
चला आया हूँ
सोच यही फिर 
पीछे देखा
कुछ ना पाया
मैं वही था
चला जहाँ से
ओ मेरे रामा......
कैसी है ये
तेरी माया...तेरी माया..
समझ ना पाया।

पागल मनवा
फिर फिर भागे
सोया हो तो 
जाग भी जाता
मृगतृष्णा 
जैसे मन की छाया।
पद की अभिलाषा
धन की आशा
यश की करे मन कामना
सबसे आगे रहने की
हर मन जन्में भावना
सब कुछ पा कर भी क्या पाया
जैसे धूप की छाया
ओ मेरे रामा......
कैसी है ये
तेरी माया...तेरी माया..
समझ ना पाया।



Monday, November 4, 2013

ये जो दिल उदास रहता है,...



ये जो दिल उदास रहता है, 
तुझे याद करता रह्ता है।


वैसे तो जी रहे हैं दुनिया में
निभाते हुए हर रस्मों को
संभाले चलते हैं जमानें के साथ
तेरे वादों को तेरी कसमों को
ना जाने फिर भी ये आँसू क्यों बहता है।


ज़माना समझे है जीवन मे मेरे गम ही हैं
अभी जिन्दा हूँ क्यों कि कम ही हैं
मेरी चाहत है.. तुझ -सा हो जाँऊ
ये ख्वाइश मेरी बहुत कम ही है
अपनी ही ख्वाइश पे शक क्यों रहता है।


हमने चाहा था कब आना तेरी दुनिया में
झूठे लोगों का तमाशा यहाँ चलता है
कहने को दोस्त भाई सखा सब हैं
हर दिल में मगर फ़रेब पलता है।
कोई बताए उजाला शब के घर क्यों रहता है



Thursday, October 24, 2013

सुन री निशा !



सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।

तेरा आना मन को भाये
सपनों का संसार रचाये
बिन पंखों के दूर गगन में
पंछी बन चहके, उड़ जाये
हर मन तेरा ही निवास है।

विरह वेदना एंकाकीपन ये
संसारी की प्रीत पुरानी
मिल के बिछुड़ना बिछ्ड़ा मिलना
संसारी की यही कहानी
आदम में बस यही खास है।

प्रतिपल जीना मरना जीवन
अमृत गरल का पीवन जीवन
सत्य असत्य का पथिक बन चलना
रिश्तों-नातों का सीवन जीवन
जीवन का कैसा परिहास है ?

अभिलाषा का निर्मित भंडार
किसने किया इसे साकार ...
नूतनता,प्रतिपल परिवर्तन
जीवन का बस यही आधार
फिर भी ये कैसा उल्लास है ?

सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।


Friday, August 16, 2013

फिर तेरी यादें आई.....


फिर तेरी यादें आई ये मन तरसा है।
 इस भरी दोपहरी में सावन बरसा है।

दिन का चैंन गया रातों की नींद गई,
मोहब्बत लगती हमको अब कर्जा है।

अब दिल के बदले दिल नही मिलता।
किसी भी मौसम में गुल नही खिलता।

वो जो कहते थे हजारॊ यहाँ अपने हैं,
रोनें को एक भी कंधा  नही मिलता।



Thursday, July 11, 2013

तीन कवितायें


 आदत

आदत नही
भूलने की
भूलें सताती हैं
कह्ते हैं ...
वो भटके राही को
राह दिखाती हैं
रोज नये दुश्मन
बन रहें हैं दोस्त.
आदते क्या सौंगाते
हमें दे के जाती हैं....


तन्हाई
तन्हा चलना
मुसीबत बन रहा है।
बहारें कब आई ..
कब गई....
पता भी ना चला।
राह चलते जो मिला
जी भर के ..
उसी ने है छला।


मजबूरी

सर्दी और महँगाई
दोनों
गरीब को
सुकड़ने पर
मजबूर करती है।
पता नही ये
पूँजी
पतियों से
क्यों डरती है....





Wednesday, June 26, 2013

जब अपना कोई रूठ गया...



बरसा बादल जग डूब गया,
जब अपना कोई रूठ गया।

 निरव खग का सब कोलाहल,
क्या पवन वेग से दोड़ेगी।
क्या नदिया सरपट उछल उछल
पर्वत की छाती फोड़ेगी।
ये कैसा मन बोध मुझे
मेरे सपनों को लूट गया।

बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।

 प्रियतम का विरह ऐसा ही
क्या होता सब के जीवन में ,
अमृत भी विष-सा लगता है
तृष्णा में वारी पीवन में ।
क्रंदन करती हर दिशा लगे
काला बादल ज्यों फूट गया।

बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।

Wednesday, May 22, 2013

क्षणिकाएं

मेरा सच
मुझे ही मुँह चिढाता है
जब उसे सुन
कोई मेरा अपना ही
दुखी हो जाता है।

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 मैंने जो पाया
उसमे  उन्हें
साजिश लगती है।
उसे पाने में 
मैंने क्या खोया
वे जानना नही चाहते....
उन्हें बस अपनी सोच
वाज़िब लगती है।
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कहो कुछ ऐसी
जिस बात तो
सब समझे।
वो भी
क्या कहना हुआ
तुम्हारी बात को
बस तुम समझे।

Monday, April 22, 2013

यादों के लिए दिल बहुत छोटा है.....



यादो के लिए ये दिल  बहुत छोटा है।
जब यादें सताती हैं ये बहुत रोता है।

सोचता था किसी दिन  सब भूल जाऊँगा
 मालूम नही है मुझे , ये कैसे होता है।

कह्ते हैं शराब ग़म भुलानें का जरिया है
जब भी पी,ज्यादा तड़पता हुआ ये  लौटा है।
 
लाख ख्वाईशें करो जन्नत की बहारों की   
भी का एक-सा नसीब नही होता है।

मानें की कही हर बात सच नही होती
वही मिलता है, आदमी जैसा बोता है।




Tuesday, March 19, 2013

अपने ही जब गैर हुए....


 

अपने ही जब गैर हुए जाते हैं,
दिले-दर्द बनकर ठहर जाते है।

कभी आँख का आँसू 
कभी बादल-बिजली
तन्हा स्याह रातें मे 
खौफ-जदा़ करते साये
मेरी नींदें चुरा कर 
गुम हो जाते हैं।
अपने ही जब गैर हुए जाते हैं,
दिले-दर्द बनकर ठहर जाते हैं।

 याद करते रहते हैं 
अपने बीते पल को
जो कभी साथ-साथ 
गुजारे थे।
तुम दोड़े चले आते थे 
आधी रातों को 
हम जब भी कभी  
पुकारे थे।
वो खुशनुमा पल 
हमारे जीवन के
इतनी जल्दी 
गुजर कयूँ जाते हैं।
अपने ही जब गैर हुए जाते हैं,
दिले-दर्द बनकर ठहर जाते हैं।



Friday, February 22, 2013

फिर कुंभकरण जागेगा.....

                                 
फिर हुआ धमाका !!
कहीं फटा बम्ब..
आम आदमी मरा..
वही मरता है..
कुंभकरण ....
नींद से जागा ।
आतंकीयों की निंदा की..
उन्हें सख्ती के साथ निपटा जायेगा...
रेड अलर्ट करेगें..
सुराग खोजनें शुरू हो जायेगें..
कौन से आतंकवादी संगठन का हाथ है
पता लगाया जायेगा..
मरनेंवालो और घायलों को
मुआवजा देनें का 

लान किया जायेगा..
इसी बीच..
कुंभकरण फिर सो जायेगा।
कुछ समय बाद
फिर ऐसे ही दोहराया जायेगा।
फिर कुंभकरण जागेगा.....




Tuesday, January 22, 2013

गज़ल




बहते हैं आँसू ऐसे कोई झरना बह रहा हो।
ख़ामोश हैं जु़बानें, कोई मुर्दा सह रहा हो।


दिल टूटनें की आवाज कौन सुन सका है,
सपनों का शहर मेरा अब देखो ढह रहा है।

टूटे हुए दिलों में घर किसने कब बसाया,
हमें कदम-कदम पर अपनों ने  सताया।


शिकवा करें क्या, ये दस्तूर जिन्दगी का,

सदीयों से चल रहा है, हमनें नही बनाया।