चलते चलते
कितनी दूर
चला आया हूँ
सोच यही फिर
पीछे देखा
कुछ ना पाया
मैं वही था
चला जहाँ से
ओ मेरे रामा......
कैसी है ये
तेरी माया...तेरी माया..
समझ ना पाया।
पागल मनवा
फिर फिर भागे
सोया हो तो
जाग भी जाता
मृगतृष्णा
जैसे मन की छाया।
पद की अभिलाषा
धन की आशा
यश की करे मन कामना
सबसे आगे रहने की
हर मन जन्में भावना
सब कुछ पा कर भी क्या पाया
जैसे धूप की छाया
ओ मेरे रामा......
कैसी है ये
तेरी माया...तेरी माया..
समझ ना पाया।