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Saturday, January 31, 2009

बस! जागरण का इंतजार है


भीतर कुछ तो मरा हुआ है
तभी तो बाहर आँखें जो भी देखती है
भीतर कुछ सुगबुगाहट होती तो है
लेकिन फिर ना जानें क्युँ
कुछ करने से पहले ही मर जाती है।

अतंर्मन बस देखता रहता है
कुछ करता नही।
क्युँ हर बार ऐसा ही होता है
फिर अकेले में बैठ
यह मन रोता है।

पहले यह मन
दुनिया को देख कर कुछ कहता था।
अब खुद से कुछ नही कह पाता।
कुछ ऐसा खोज रहा हूँ
जो कहनें और करनें के लायक हो।
लेकिन हर बार की तरह
खाली हाथ लौट आता हूँ।
अब तो लगनें लगा है
यहाँ ऐसा कुछ भी नही है
जो कुछ होनें का एहसास
कुछ करनें का एहसास
मुझे करा सके।
यह सच है या सपना
यह जाननें के लिए रुका हुआ हूँ।
बस! जागरण का इंतजार है।

Friday, January 30, 2009

सूरज की तलास में


फिर निकला हूँ
अपनें सूरज की तलाश में।
उसे कंदराओं में खोजता हूँ
धरती और आकाश में।

उस की रोशनी तो
सदा से मेरे आस-पास
नजर आती है।
यही रोशनी मुझे उस के होनें का
आभास करा जाती है।
एक दिन इसी रोशनी की
डोर पकड़ कर
पहुँच जाऊँगा
उसके पास में।
इसी लिए जी रहा हूँ
आस में।

कई बार सोचता हूँ
मेरे सूरज
तुम मुझे आवाज क्युँ नही देते?
मेरी सागर में हिचकोले खाती नौका को
अपनी ओर क्युँ नही खेते?
हवा का रूख अपनी ओर
मोड़ क्युँ नही लेते?
कुछ बोलते क्युँ नही
मेरे प्रश्नों के जवाब में।
फिर निकला हूँ
अपनें सूरज की तलाश में।

Thursday, January 29, 2009

एक धीमी -सी आवाज

घूँघट में बैठी दुल्हन घूँघट मे रो रही है या हँस रही है,यह तो वही जानें! उस की आँख में खुशी के आँसू हैं या किसी दुख के,कोई दूसरा कैसे बता सकता है? इस का फैसला उसी पर छोड़ देना चाहिए कि वह किस राह जाती है,क्या सो्चती?सदियों से धरती में दबा कर रखा गया मोती अभी मोती नजर नही आयेगा। वह इतना मलीन हो चुका है कि उसे की पहचान करना भी अभी मुश्किल है कि वह क्या सच में कोई मोती ही है या कुछ ओर?
आज ऐसे लगता है जैसे हमने उस मोती को पीट पीट कर धरती में इतना गहरा ठोक दिया है कि वह अपने आप से बाहर निकलने की छटपटाहट में अपने ऊपर पड़ी गर्द ,पत्थर को हटानें की कोशिश करता है तो वह मोती ,गर्द और
पत्थर हमें लौटा देता है।हम अब तक जो देते रहे हैं वही तो पाएगें।अब तो अपनी गलती स्वीकार करों। भले ही यह गलती तुमने नही तुम्हारे पूर्वजों ने की थी।
वैसे उसे मोती कहना सही नही लगता। बस यही करो कि वह वही हो सके जो तुम हो।

क्या आपको यह धीमी -सी आवाज सुनाई नही दे रही?......

Sunday, January 25, 2009

जब मन का पंछी.............





जब मन का पंछी आंसमा में
दूर कही उड़ जाता है

तब-तब मेरा मन गाता है।

सुन्दर सपनों का गड़ना,

रात में उन का फिर झड़ना।

इस उठा-पटक के जीवन में,

कब किसको, कहाँ सुहाता है।

जब मन का पंछी......।


फिर भी निर्मित किए जाते,

सुन्दर सपनों के महल यहाँ।

चलते-चलते थक जाते हैं,

बिन बूझे जाना हमें कहाँ?

सबकी अपनी परिभाषाएं,

पर समझ कहाँ कोई पाता है।

जब मन का पंछी........।


हर पथ पर फूल और काँटें हैं,

सबने बस फूल ही छाँटें हैं।

हँस-हँस चले तो संग सभी,

किसनें गम तेरे बाँटें हैं।

पर पथ चलना मजबूरी है,

कौन यहाँ बच पाता है?

जब मन का पंछी......।


अब हँस कर या रो के चल,

सुख-दुख ना पीछा छोड़ेंगें।

जिन को तू अपना कहता है,

मझधार में तुझको छोड़ेगें।

ये तो तेरा हाल है परमजीत

दुनिया को क्या समझाता है?

जब मन का पंछी आसमां में

दूर कहीं उड़ जाता है।

तब-तब मेरा मन गाता है।

Monday, January 19, 2009

शब्दों की मौत

बिखरे हुए अक्षरों को
भावनाओं के धागे में
पिरों कर
बहुत यत्न से तुम आते हो।
फिर एक के बाद दुसरा
सजते जाते हो।
शब्द बन जाते हो।

लेकिन
यहाँ जब कोई इन्सा
तुम्हें देख सुन कर भी
अंजान रहता है।
तब नि:शब्द हो कर
यह शब्द
आँसू बन बहता है।

जब इन आँसुओं को
कोई नही पोंछता।
तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोंट।
तभी होती है
इन
शब्दों की मौत।

Monday, January 12, 2009

बचपन की यादें

झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।
रात अंधेरी संग ना साथी, खो गई सारी सखियां।
आता है फिर याद हमें वही गुजरा हुआ जमाना।
लगातार बतियाते रहना, आँखों से शर्माना।
भूल ना पाए अब तक हम बचपन की वो यादें।
झूठ-मूठ के राजा-रानी, झूठ-मूठ के वादें।
बेमतलब दुश्मन से लड़ना,लड़-लड़ कर मर जाना।
झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना।
पता नही अब कब लौटेगी बचपन की वो सखियां।
झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।


Thursday, January 1, 2009

नया साल आ रहा है।

मेरे सपनों को
साथ लेकर,
मेरे अपनों की
यादें देकर,
देखो!
वह जा रहा है.......
नया साल आ रहा है।

नये साल!
तुम बुरा मत मानना।
कुछ सालों से
मैं तुम्हारा स्वागत
ठीक से नही कर पा रहा हूँ।
क्यूँकि हर बार की तरह
इस बार भी
मुस्काहट के पीछे
आँसु छुपा रहा हूँ।

जानता हूँ
हम सब रस्म तो निभाएगें।
"नया साल मुबारक हो"
सब मिल कर गाएगें।
लेकिन क्या जो हमारे अपनें
दहशतगर्द का शिकार हुए
उन्हें भूल पाएगें।
देश के लिए जो मर मिटे
उन शहीदों के लिए
क्या दो आँसु भी ना बहाएगें?
मुझे तो
यही ख्याल
खा रहा है।

मेरे सपनों को
साथ लेकर,
मेरे अपनों की
यादें देकर,
देखो!
वह जा रहा है.......
नया साल आ रहा है।
नया साल आ रहा है।