हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, December 26, 2007
एक नयी सुबह का इंतजार
उन बुढ़ी आँखों में
पानी ही रहता है।
अपनी बहू की कहानी को
खमोशी से कहता है।
ठंड मे ठिठुरती,काँपती-सी,
अपने को फटी शाल से ढाँपती-सी,
लाचार-सी,अक्सर दिख जाती है।
लेकिन ना जानें क्यूँ
मुझे देख मुसकाती है।
लगता है जैसे वह
बहुत कुछ कहना चाहती है,
कह नही पाती।
उसकी कमजोर होती देह देख,
मुझे भी लगता है,
वह भर पेट नही खाती।
हर सुबह,
टूटी खटिया पर बैठी,
करती रहती है,
सूरज निकलने का इंतजार।
शायद कभी सुबह,
उस के लिए भी आएगी।
तब वह उस के साथ,
कहीं दूर निकल जाएगी।
सोचता हूँ,
क्या तब,
इस खाली खाट को देखकर,
उस बहू को कॊई
कहानी याद आएगी?
जो एक दिन,
फिर दोहराई जाएगी।
जब समय की मार से
वह भी हार जाएगी।
समय तो अपनी बात
सभी से कहता,रहता है।
लेकिन
कब से देखता आ रहा हूँ
उन बुढ़ी आँखों में
पानी ही रहता है।
Tuesday, December 25, 2007
आज की राजनिति पर कुछ विचार:क्षणिकाएं
जो आदम खोर
अपने को दूसरों से
ज्यादा दयालू बताएगा।
वही तो
भ्रम में पड़ी जनता से
"यह" सम्मान पाएगा।
२.
जीतना और सम्मान पाना,
दोनो अलग बात हैं।
जीतने वाला,
साम दाम दंड भेद से ,
जीत जाएगा।
यदि वह संत नही,
शैतान है तो,
शैतान ही कहलागा।
Sunday, December 23, 2007
कमजोर आदमी
सदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
अब कब और कैसे सूखेगा पानी?
कब खतम होगी यह कहानी?
"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।
पता नही इन से क्यों ऐंठा है?
हरिक आदमी
अपनी ताकत इसी पर अजमाता है।
सताए हुए को और सताता है।
आज फिर
एक कहानी याद हो आई?
जो किसी ने थी सुनाई।
अर्जुन ने एक बार
जब वह वन में घूम रहे थे
श्रीकृष्ण के साथ ,
पूछा था-"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"
"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"
कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."
"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।
"अर्जुन तुरन्त चल दिया।
लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।
कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"
"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"
अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"
कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"
टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
ऐसे में,
कैसे कमजोर आदमी को
संम्बल ,सहारा मिलेगा।
क्या उस का चहरा भी
कभी खिलेगा?
Saturday, December 22, 2007
मैं अफगानिस्तानी नही भारतीय हूँ
Friday, December 21, 2007
प्यार की भाषा
कब किसी को दिखते हैं
मगर यह सच है,
यही मोती बिकते हैं।
कभी खबर बन कर
कभी बन कर तमाशा
बहुत अजीब है
इस दुनिया की
प्यार की भाषा।
मुक्तक-माला-९
मिटता नही कहीं भी कुछ, बदलती बस सोच है।
आदमी का मन भटकता है वहाँ बहुत लोच है।
झूठ को मरना ही होगा, सत्य नही मर पाएगा,
पीढी बदले तो वो बदले,पहुँचें वही जहाँ मौज़ है।
२.
बदला समय, समय ने बदला क्या यही था आदमी।
छोटी-छोटी बात पर , हुआ बेलगाम आदमी।
मर गई शालीनता कहीं, मर गई इंन्सानियत,
खो के आपा, खा रहा है आदमी को आदमी।
Thursday, December 20, 2007
आज का सच
जी कर भी क्या करेगा?
अपने को साबित करना
वह कब का भूल चुका।
सफेद कफन ओड़े
संवेदनाओं से हीन है,
संज्ञा से हीन है,
वह बहुत दीन है।
पतझड है चारों ओर
कहता बसंत छाया।
पंछी बिन पंख उड़ता
कहता आकाश पाया।
ना मालूम किस दुनिया में
बैठा है सपनें बुनता
सपनों को बुननें में
कितना तल्लीन है।
वह बहुत दीन है।
जिन्दा है रहना मुश्किल
चलना भी दूभर हुआ
कदम-कदम गिरता है
घायल है लहूलुहान हुआ
देखा -सुना सबनें
बजती जैसे भैसों के आगे
वही पुरानी बीन है।
वह बहुत दीन है।
Tuesday, December 18, 2007
इन्सान
बाहर आना नही चाहता।
क्यूँकि फरेब की दुनिया
उसे नही भाती।
यहाँ सच्चाई
नही मुस्कराती।
बाहर का आदमी
भीतर जाना नही चहता।
वहाँ उस का ओहदा
साथ नही जाता।
कोई भी उसे वहाँ
नजर नही आता।
ये दोनों आदमी
जिस दिन एक हो जाएंगें।
उस दिन हम इन्सान
कहलाएंगें।
एक सवाल....
नया सपना
जन्म लेता है।
हर सुबह
वह अपना दम तोड़ देता है ।
अंधेरे और रोशनी की
इस लड़ाई में,
कौन जीता
यह दिखाई नही देता है।
फिर भी छूटता नही,
सपने बुनने का चलन।
एक की जगह
दूसरा ले लेता है।
बस बुनते रहो और टूटते हुए देखो,
जीवन क्या यही,
बस हमें देता है?
Monday, December 17, 2007
जब प्रेम ही वासना......
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
किससे शिकायत करे आदमी,
जब धन आदमी की पहचान हो।
नंगे होनें में क्या शर्म है,
जब धन आदमी का ईमान हो।
इज्जत की रोटीयां जल गई,
जब चाहिए सभी को पकवान हो।
जब रहे दो-दो आदमी एक में,
आदमी की कैसे, पहचान हो।
जो अपनें लिए साधू बन गया
दूसरे के लिए, वही शैतान हो।
देख-देख मुझे आज यह है लग रहा
कही बदला हुआ ना भगवान हो।
अब ढूंढेगा प्यार यहाँ कहाँ,
बातें यह किताबों में रह जाएगी।
जब गरीब को भूख सताएगी
रो-रो के दुखड़ा सुनाएगी
जब वासना ही प्रेम कहलाएंगी।
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
Saturday, November 24, 2007
Thursday, November 22, 2007
ना जानें क्या......
अतीत में
ढूंढता है मन मेरा।
उन खंडरों के बीच,
ना मैं हूँ,
ना कोई घर मेरा।
पर जोह रहा हूँ बाट कब से
उसके आनें की सदा।
आएगा या ना आएगा तू ,
देखता रस्ता तेरा।
टूट कर पत्तें गिरें,
जो भी, पीलें हो गए।
वृक्ष से हो कर जुदा,
जा कर कहीं पर सो गए।
कल हाल अपना भी यहीं,
होना है,मन जानें सदा।
दुनिया की फुलवारी से जैसे,
फूल होते हैं जुदा।
ना जानें क्या
अतीत में
ढूंढता है मन मेरा।
उन खंडरों के बीच,
ना मैं हूँ,
ना कोई घर मेरा।
Wednesday, November 21, 2007
क्षणिकाएं
१
एहसान
तुम मेरी बात पर
कभी ना नही कहना।
मेरे बोझ को सदा
अपना समझ
सहना।
२.
सरकार
वादे और सपनें बेचनें की कला
सिर्फ
अपना भला।
३.
नेता
कुत्तों का मालिक
जनता का लुटेरा
एक बड़े घर में
जबरन
डाले है डेरा
४.
वामपंथी
इन के झंडें का रंग लाल
इन के मुँह का रंग लाल
इन का भोजन का रंग लाल
फिर भी कुर्सी पर बैठें हैं।
इसे कहते हैं हमारे देश में
प्रजातंत्र
है ना कमाल!!!
Tuesday, November 20, 2007
इंतजार
जो अधूरे ही रह गए
किस का कसूर था या रब
जो आँसू बन कर बह गए।
अब रास्ता बदल-बदल कर
उन्हें ढूंढता रहता हूँ
अपनी मर्यादाएं तोड़
नदी-सा बहता हूँ।
अब संग चलनें को
तैयार कोई नही होता
अब मेरे गम से यहाँ
कोई नही रोता।
यदि मेरे अधूरे सपनें
किसी को कहीं मिल जाएं
किसी आँगन में वह फूल
कहीं खिल जाएं
तो मुझ को उस की
खबर कर देना
Saturday, November 17, 2007
आज किस बात पर तुझे रोना आया

Thursday, November 15, 2007
जब वासना ही प्रेम........
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
किससे शिकायत करे आदमी,
जब धन आदमी की पहचान हो।
नंगे होनें में क्या शर्म है,
जब धन आदमी का ईमान हो।
इज्जत की रोटीयां जल गई,
जब चाहिए सभी को पकवान हो।
जब रहे दो-दो आदमी एक में,
आदमी की कैसे, पहचान हो।
जो अपनें लिए साधू बन गया
दूसरे के लिए, वही शैतान हो।
देख-देख मुझे आज यह है लग रहा
कही बदला हुआ ना भगवान हो।
अब ढूंढेगा प्यार यहाँ कहाँ,
बातें यह किताबों में रह जाएगी।
जब गरीब को भूख सताएगी
रो-रो के दुखड़ा सुनाएगी
जब वासना ही प्रेम कहलाएंगी।
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
Wednesday, November 14, 2007
सच्चाई
Monday, November 12, 2007
समाजवाद
गंदा नाला बनती जाएगीं
जब हमारे तुम्हारें हाथों से
ऐसी फैलनें वाली
गंदगी खांएगीं।
भविष्य तो
ऐसा ही होना था।
यही तो रोना था
तरक्की के नाम पर
फैलता यह गंद
धीरे-धीरे
हम सब में भी
भरता जा रहा है।
अब ऐसा ही
समाजवाद आ रहा है।
Thursday, November 8, 2007
अपनी-अपनी दिवाली

Wednesday, November 7, 2007
बिना प्रयास
नामालूम तुम
कहाँ से उतर कर आती हो?
बिखर-बिखर जाती हो
भावों के मोती बन
एक माला-सी बन जाती हो।
जबकि मैनें तुम्हें
कई बार गहरे सागर में
डुबकी मार कर खोजा।
बियाबान जंगलों मे
बहुत लोचा।
तुम्हारे बारे में
अपनें भीतर
उतर-उतर कर
कितना सोचा।
आस-पास खॊज-खोज कर
हार गया।
लेकिन
मेरा प्रयास व्यर्थ
हो जाता है।
मन बहुत झुँझलाता है।
तुम्हारा चमकते हुए प्रकटना
हर बार मुझे
अचंभित कर जाता है।
जब बिना प्रयास
मन मेरा गाता है।
कविता का
जन्म हो जाता है।
Tuesday, November 6, 2007
पछतावा
Saturday, November 3, 2007
Friday, November 2, 2007
वो जिन्दा जलता इंन्सा.......
Wednesday, October 31, 2007
बचाव
तभी नजर आएगा
कि हमारे आस-पास
क्या हो रहा है।
इस की परवाह
कौन करता है-
कि यह आग
किस के घर पर लगी है।
यह आग
जिस के कहनें पर
हम लगाते हैं।
उस की नजर
हमारे घर पर भी है।
इस आग में
जलते अरमा,इंसा और...
चीखते घरों का बोझ
हमारे सर पर भी है।
इस आग से बचना है तो
इस आग से मत खेलों।
जिस के कहनें पर
आग लगाते हो
उसे मत झेलों।
Monday, October 29, 2007
एक गलत तलाश
Sunday, October 28, 2007
भीतर की रोशनी
अच्छी नही लगती।
इसी लिए भीतर
कोई लौं नही जलती।
इस लौं को जलाने के लिए
अपने शब्दों को
अपने भीतर से
निकाल कर सहेजें।
शब्दों के साथ
भावनाओं को परोसे
और सही आदमी को भेजें।
Thursday, October 25, 2007
मुक्तक-माला-७
Wednesday, September 12, 2007
तांत्रिक क्रियाओ तथा आत्माओं का सपनों पर प्रभाव
जो लोग धर्म-कर्म पर विश्वास रखते हैं वह जानते हैं कि हम जैसे धर्म भीरू कहे जाने वाले लोग जरा -सी परेशानी आ जाने पर झट से किसी भी देवी-देवता या अपनें इष्ट देव के प्रति मन्नत मान लेते हैं, कि यदि हम इस से निजात पा गए तो आप को प्रसाद चड़ाएंगें।या फिर किसी कार्य के पूरा होनें पर जागरण,कीर्तन,या भोजन आदि करवाएंगें।
लेकिन इस भाग -दोड़ की जिन्दगी में कई बार,जो मन्नत हम मानते हैं वह भूल जाते हैं।उस समय हम में से कुछ लोगों को सपनें आनें लगते हैं।हमारे पूर्वज सपनों में आ आ कर किसी चीज की माँग करते हैं।या फिर डरावनें सपनें आनें लगते हैं।कुछ लोग यह कह सकते हैं कि यह इस लिए होता है की हमारे अचेतन मन में वह बात बैठी रहती है, जो अवसर पा कर सपनों के रूप में हमें दिखाई देनें लगती है।यह बात भी सही हो सकती है,लेकिन अध्यात्मिक विज्ञान बहुत जटिल है इस लिए कुछ भी दावे के साथ नही कहा जा सकता।
एक दूसरा कारण किसी तांत्रिक द्वारा किया गया कोई टोना-टोटका जो की अकसर आप चौराहों पर या किसी अंधेरी जगह,पीपल के या किसी अन्य पेड़ के नीचे,किया हुआ देखते हैं।उन किए हुए टोटकों पर गलती से पैर पड़ जानें या किसी प्रकार से निरादर हो जानें के कारण उस टोट्के के प्रभाव के कारण भी रात को डरावनें या अजीबों गरीब सपनें आनें लगतें हैं।
तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि किसी द्वारा आप पर कोई तांत्रिक क्रिया की गई हो तो ऐसे में भी आप को इस तरह के सपनें आ सकते हैं। तथा अतृप्त आत्माओं के आस-पास होनें पर भी ऐसे सपनें आते हैं।
कई बार पूर्व जन्म के किए कृत्यों के कारण भी ऐसे सपनें आते हैं।बहुत से लोग इस बात को भी मानते हैं।ज्यादा तर देखा गया है कि अध्यात्मिक व बहुत अधिक संवेदनशील व्यक्तियों को ही अधिकतर ऐसे सपनें आते हैं।इस तरह से और भी बहुत कारण हो सकते हैं जिस का अभी हमें बिल्कुल भी पता नही है,जो हमारी नींद मे सपनॆ बन कर आते हैं।
इस शहर में .........
Tuesday, September 11, 2007
स्वप्न-विचारः सपने क्यूँ आते हैं?
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: स्वप्न-विचार, सपनें, इन्सान, घटना, विचारक, समाज, स्वप्न-परिक्षा, प्राचीन, रोग, रोग-निदान, आयुर्वेदाचार्यों, चिकित्सा, स्त्री, ऊठ, शेर, ब्राह्मण, देवता, राजा, गाय, याचक, साँप, कल्याण, भविष्य-दर्शन, ईसा, मसीह, भाषा, सम्मोहन, विधा, मानसिक, रोग, तंत्र-मंत्र-यत्र, परमजीत, बाली,
Monday, September 10, 2007
भीतर का सैलाब
अक्सर झूठ होती है
अपने मन से पूछो
वह हमेशा झूठा साबित होता है
तुम हमेशा व्यापारियों की तरह
उस से व्यापार ही करने की सोचते हो
तभी तो हर बार उसे
फायदे की जगह नुकसान का
सौदा कर के अक्सर घर लौटते हो
लेकिन तुम्हारा यह अपने आप को
समझाने का ढंग
कि तुम हमेशा सही होते हो
तुम्हारे मन को तो सांत्वना देता है
लेकिन बाहर की जग हँसाई
तुम्हें भी तो विचलित कर जाती होगी
भले ही तुम इसे ना स्वीकारो
ना मानो इस सच्चाई को
इस से दुनिया की सोच पर
क्या फरक पड़ेगा
तुम्हारी सोच सिर्फ तुम्हारे लिए है
मत हठ करो बच्चों की तरह
तुम्हारी हठधर्मिता
बहुत दूर तक तुम्हें ही परेशान करेगी
तुम्हारे जीवन में स्याह रंग भरेगी
आनंद पाने की अभिलाषा
प्रत्येक मन में होती है
इसे कौन अस्वीकार करेगा
जिस ने भी आनंद की जगह
अपनी पीड़ाओं को उजागर किया
वही जीवन के समर में
पराजित कहलाया है
उसी ने कभी कवि बन
कभी रचनाकार बन
अपने आप को
अपने ही आँसूओं से
एकांत मे नेहलाया है
मन के भीतर कि मेरी पीड़ा
शायद तुम्हें कोई मार्ग सुझा दे
अनूठी दुनिया का कोई
जलता हुआ पाप बुझा दे
इसी कोशिश मे अक्सर
मै बहुत भटकता रहता हूँ
अपने आप को अपने भीतर
सटकता रहता हूँ
क्यूँकि दुनिया की भीड़
यहाँ हरिक अभिलाषा को
लील लेती है
आप की जुबान को
सील देती है
मत सुनना मेरी बात
मै तो स्वयं ही
कितनी बार
धोखा खा चुका हूँ
अब तक जो भी जीया
मुझॆ लगता है
मै वह गँवा चुका हूँ
मै वह लुटा चुका हूँ
जिसे पाट्ना ना तुम्हारे बस मे है ना मेरे
तुमने जो मुझ मे देखा
हम सभी जानते हैं
तभी स्वीकारा है
हम अक्सर भय के कारण
भीतर का सैलाब
सभी के भीतर बहता है
इसी लिए हमारे
हर प्रश्न के साथ प्रश्न रहता है।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: नेता, भूख, पाँच, साल, गाँव, शब्द, गर्भाधान, बोतल, मत, परमजीतबाली, परमजीत, रचनाकार, खबर, झूठ, सच्चाई, समय, व्यापार, फायदे, नुकसान, सौदा, सांत्वना, जग, दुनिया, हठधर्मिता, रंग, अभिलाषा, आनंद, कवि, सत्यबोध, भीतर, का, सैलाब,
Sunday, September 9, 2007
भूख और नेता
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: नेता, भूख, पाँच, साल, गाँव, शब्द, गर्भाधान, बोतल, मत, परमजीतबाली, परमजीत,
जीवन-सार

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: बरगद, जीवन, दर्पण, हवा, अमर, बेल, कविता, परमजीतबाली,
नदिया के गीत
बहती है नदिया
चलते रहो तुम
चलते रहो तुम
कहती है नदिया
आएं जो खाई
उसको तुम पाटो
शंख-सीपियां
दुनिया को बाँटों
हसँती है नदिया
मध्य धाराओं के
बसती है नदिया
दो किनारों में
चंचल-सी इठलाती
अपना-सा स्वर गाती
लहराती साँपो-सी
अपनी ही मस्ती मे
चलती है नदिया
२.
इक नदिया भीतर है
मन के भावों संग
लहर -बहर चलती है
कविता बन फलती है।
Saturday, September 8, 2007
तू समझा रे
अब तन्हा ही चलना होगा
जिनको अपना मानके बैठा,
विश्वासों की कडि़याँ टूटी
जानके सच को मन ना मानें
अपने को, खोजा नही हमनें,
अब जो बोया खुद ही काटो,
दूजों को उपदेश ना देना,
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: रात, अंधेरी, चाँद, धारा, कडि़याँ, विश्वासों, सच, संभल-संभल, मोह-माया, उपदेश, महल, जाल, खोजा, paramjitbali, उपदेश, मन, कविता, गीत, काव्य, तू, समझा, रे, दिशाएं, धर्मशाला, इंकलाब, साधना,
Thursday, September 6, 2007
ठहराव
कब से देख रहा हूँ ।
टूटन ही टूटन है ।
सब धीरे-धीरे बिखरा है ।
एंकाकीपन बस निखरा है ।
भीतर कुछ भी नही बचा है ।
लेकिन शोर बहुत है बाहर के परिवर्तन का।
बन गई हैं ऊँची-ऊँची मीनारें,
हरिक घर में हैं,
मन बहलाव के साधन,
क्यूँकि आपस का विशवास
मर चुका है तड़प-तड़प कर
जैसा मरना हो जल बिन मछली का।
अब रातों को माँ लोरी नही सुनाती
दादी तो कभी नजर नही आती
पापा हरदम थके-थके से
अपने ही भीतर रहते गुम हैं
अक्सर माँ की आँखें दिखती नम हैं
जैसे प्रतिक्षा करता हो बादल बरसने का।
सब दोड़ रहे हैं दिशाविहीन,
पथ पर बस चलना सीखा है।
मंजिल की किस को चिन्ता है।
प्रतिस्पर्धा है आपस की
पराजय किसी को स्वीकार नही
क्यूँकि भीतर अब प्यार नही।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: ठहराव, साधन, मछली, विशवास, माँ, दादी, आँखें, बादल, चित्र, जीवन, परमजीत, बाली, कविता,
Tuesday, September 4, 2007
सावधान रहे ऐसी लड़कीयों से...
पता नही मै जब भी गध में लिखने की कोशिश करता हूँ । वह लेख कभी पूरा नही हो पाता । लिखते-लिखते बीच में ही मन उचट जाता है और वह अधूरा ही रह जाता है । ऐसा एक-दो बार नही कई बार हो चुका है । ऐसे लेख ना मालूम मैने कितनी बार आरंभ किए और फिर पूरा ना करने के कारण मुझे डिलीट करने पड़े । लेकिन आज मैने ठान लिया कि कुछ भी हो जाए , आज मै अवश्य लिखूँगा । मेरे भीतर ना मालूम कितनें अनोखे और विचित्र प्रसंग व घटनाएं मन मे उधम मचाते रहते हैं कि मै उन्हें किसी से बाँटू । आज मै जो घट्ना बताने जा रहा हूँ वह एक प्रेम-प्रसंग से संबधित है ।
यह घट्ना पन्द्रह-बीस साल पुरानी है । हमारी कालोनी मे एक *** परिवार का नौजवान लड़का रहता था । वैसे तो वह बहुत चंचल स्वाभाव का ,दिल फैक किस्म का लड़का था । उसे हमेशा नारी-मित्र बनानें की धुन लगी रहती थी । इस काम में वह अक्सर कामयाब हो जाया करता था, क्यूँकि एक तो वह अच्छी कद-काठी का हट्टा-कट्टा सुन्दर गौरा व आकर्षित व्यक्तित्व का स्वामी था । दूसरा वह एक कमाऊ पूत था । अच्छी- खासी कमाई कर लेता था । जिस कारण वह दूसरो को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता था । लेकिन एक बात जो सभी उसके बारे में जानते थे कि उसने कभी किसी को नुकसान नही पहुँचाया था, बल्कि वह किसी जरूरतमंद की मदद करने को एकदम तैयार रहता था । उसे बस उनके साथ घूमने_फिरने का शोक था । लेकिन एक दिन उस के इसी शोक ने उसे एक मुसीबत मे डाल दिया ।
हमारी कालोनी से कुछ दूर एक परिवार रहता था । यहाँ मै यह बताना नही चाहूँगा कि वह किस धरम से संबध रखता था । उस परिवार में तीन बहनें अपने माता-पिता के साथ व अपने मामा के साथ रहती थी । कुछ दिन पहले ही उस नौजवान की उस परिवार से मैत्री-संबध बने थे । उन की मैत्री का कारण कोई प्रेम-प्रसंग नही था, बल्कि उस ने उन्हें अपनी बहन बनाया था । यह बात उस नौजवान की माँ ने ही हमें बताई थी । क्यूँकि उस की माँ हमारी माँ की पक्की सहेली थी । सो अक्सर उन के घर की बातें हमें पता चल ही जाती थी । यह भाई-बहन का सिलसिला लगभग चार-पाँच महीने तक ऐसे ही चलता रहा । लेकिन एक दिन अचानक उस नौजवान की माँ ने हमारे घर आ कर एक धमाकेदार खबर सुनाई कि जब से उस का उस घर मे आना-जाना शुरू हुआ है, उस नौजवान ने अपनी कमाई अपने घर देनी बन्द कर दी है । जबकि वह पहले अपनी कमाई का एक-एक पैसे का हिसाब अपनी माँ को देता था । इस खबर के महीनें भर बाद ही उसकी माँ अपनी रौनी -सी सूरत लेकर हमारे घर आई और उसने बताया कि उन के लड़के ने उसी से शादी कर ली जिसे वह अपनी बहन बताता रहा था । उस की माँ बेहद परेशान थी । वह हमारी माँ के सामने फूट-फूट कर रोनें लगी । उसे यकीन ही नही हो पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया । इस बात की खबर कालोनी में भी फैलते देर ना लगी । जिसने सुना, वही आश्चर्यचकित हो गया । क्यूँकि सभी जानते थे कि वह नौजवान अपने माता-पिता का बहुत आदर करता था । उस की माँ ने ही बताया था कि उस के लड़के ने कभी कोई बात अपनी माँ से नही छुपाई थी, वह अच्छी-बुरी जो भी बात होती थी हमेशा अपनी माँ को जरूर बता देता था । एक दूसरी बात जो किसी को हजम नही हो पा रही थी वह यह कि जिस लड़की के साथ उसने शादी की थी वह उस की शकल-सूरत के बिल्कुल विपरीत थी । वह एकदम काली व बिगड़ेल किस्म की लड़्की थी । उस को अक्सर अवारा लड़को के साथ ही ज्यादातर घूमते देखा जाता था । वह काफि बदनाम लड़्की थी, इस लिए ज्यादातर लोग उसे जानते भी थे । उन्हे यह समझ नही आ रहा था कि वह उस लडकी के साथ शादी करनें को आखिर कैसे राजी हो गया ?
उस नौजवान की माँ अब इतनी ज्यादा परेशान रहने लगी थी,कि वह जब भी हमारे घर आती ,अपने लड़के के लिए रोने लगती थी । क्यूँ कि अब उस का लड़का अपने घर का कीमती सामान भी उठा-उठा कर उस लड़्की के घर पहूँचानें लगा था । जिस को लेकर उन के घर अक्सर झगड़े होनें लगे थे । उस की परेशानी को देख माँ ने उसे किसी सयानें से पूछने के लिए सलाह दे डाली । लेकिन क्यूँकि वह किसी ऐसे आदमी को जानती ना थी ,सो उसने बात माँ पर ही छोड़ दी कि आप ही किसी से पूछ कर इस मुसीबत से निजात दिलाएं ।
उन दिनों हमारे घर एक पंडित जी आया करते थे ,जो हाथ व जन्म-पत्री बनाने व बांचने का काम करते थे । उन्हे जो भी कोई खुशी से दान आदि देता वह वही ले लेते थे । वह स्वयं किसी से कभी कुछ माँगते भी नही थे । सो इस कारण लोग उनकी इज्जत भी बहुत करते थे और दूसरी बात उन की कही बाते व भविष्य-वाणीयां अधिकतर सत्य निकलती थी । सो यह समस्या उन्हीं के समक्ष रखी । उन्हें सारी बातों से अवगत कराया गया । सारी बातें सुन कर वे ध्यान की मुद्रा में बैठ गए । कुछ देर बाद आँखें खोल कर बोले कि वह नौजवान अपने आप मे नही है,उसे उस लड़्की के परिवार वालों ने तंत्र-विधा से अपनें कंट्रोल मे कर रखा है । इस लिए वह ऐसा व्यवाहर कर रहा है । जब हमने पंडित जी से उस से बचनें का उपाय पूछा तो उन्होनें मात्र इतना ही कहा कि जो भी उसे बचाने की कोशिश करेगा वह भी मुसीबत में फँस सकता है । लेकिन हम तो उन से उपाय जानना चाहते थे सो पूछा कि आप बस उपाय बताईएं , जैसे भी होगा हम उसे करेगें । उन्होनें कहा कि उस नौजवान की कलाई में एक धाँगा बँधा हुआ है बस उसे उसके हाथ से किसी तरह अलग कर दो वह उन के चुंगल से आजाद हो जाएगा और उस लड़की को छोड़ देगा । हमारे घर वालों ने कहा यह कौन-सी बड़ी बात है । यह काम तो कोई भी कर लेगा । लेकिन पंडित जी ने हम सब को फिर चेताया कि जो भी यह काम करेगा वह मुसीबत मे फँस सकता है,इस बात का ध्यान रखे । कुछ देर ठहर कर पंडित जी तो चले गए । लेकिन हमारी माता जी ने तुरन्त यह खबर अपनी सहेली तक पहुँचा दी ।
उस नौजावान की माँ ने सब से पहले तो यह देखा कि उस के लड़्के के हाथ में कोई धाँगा बंधा भी है या नही । लेकिन जब उसने देखा कि उस के हाथ में धाँगा बंधा हुआ है तो उसे आश्चार्य के साथ यकीन हो गया कि पंडित जी की बातें शायद सही ही होगीं कि उस के लड़्के पर जरूर कोई तंत्र-मंत्र कराया गया होगा । अतः उसने उसी समय अपनी बहन की लड़्की को बुलवा लिआ और उसे सारी बातें समझा कर, अपने भाई के हाथ मे बंधे धाँगे को उतारने के लिए कहा कि वह कैसे भी करके उस के हाथ का धाँगा उतार दे ।
कुछ ही दिनों बाद एक दिन मौका पाकर उस की मौसी की लड़की ने वह धाँगा अपने भाई के हाथ से तोड़ कर निकाल दिया । लेकिन जैसे ही उसनें वह धाँगा तोड़ा वह उसी समय बेहोश हो कर गिर पड़ी । यह देख उस का भाई उसे उठा कर सीधे अपने घर की ओर दोड़ा । यह सब देख कर उस की माँ भी भयभीत हो गई । वह अपने आप को कौसनें लगी कि क्यूँ उसने अपनी बहन की लड़की को यह सब करने को कहा । लेकिन अब क्या हो सकता था जो होना था सो हो चुका था । सो लड़्की को तुरन्त अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसे होश में आने में पूरे दस घंटें लग गये । लेकिन इस के साथ एक और चमत्कार भी हुआ कि वह नौजवान जो बात -बात पर अपने माँ-बाप से उलझ पड़ता था । अब पहले की तरह ही सहज हो गया था और उसी दिन लड़की को छोड़ अपने घर लौट गया था । लेकिन लड़की के घर वालों ने जब उसे परेशान करना शुरू किया तो वह देश छोड़कर विदेश चला गया और वही बस गया ।
आप सोच रहे होगें कि क्यों मैने यह घटना यहाँ प्रेषित की ? वह इस लिए की यदि कभी आप के बच्चों के साथ कभी ऐसी परिस्थिति आए तो आप सावधान रहें और इस बात की जाँच कर ले की कही कोई तांत्रिक प्रयोग तो आप के बच्चे या बच्ची पर तो नही कर रहा । जब भी कोई व्यक्ति अनायास अपने स्वाभाव के उलट आचरण करने लगे तो आप को इस बात की सावधानी अवश्य बर्तनी चाहिए । मै जानता हूँ कि मेरे कुछ भाई-बहन मेरी इस बात से सहमत नही होगें और कुछ भाई-बहन मुझे अंधविश्वास फैलानें का दोषी भी ठहराएगें । मेरी अलोचना भी करेगें। लेकिन मैने यहाँ सिर्फ अपनें सामनें घटी एक सत्य-घटना का ही ब्यान किया है । (सिर्फ इन के असली पात्रों का परिचय नही दिया ) उसे आप अपने विवेकानुसार चाहे तो मानें, या ना मानें, यह आप पर निर्भर करता है ।
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