Monday, October 25, 2010

बस ऐसे ही......


अब क्या सुनाएं कहने को कुछ नही यहाँ।
जब जान ली हकीकत, जाएगें अब कहाँ ?

बस खेल है खुदा का, वही खेले रात -दिन,
नासमझ, अपना समझ, बैठे थे ये जहाँ।

कोई जगाए, तो बुरा ,हमको बहुत लगे,
कैसी दुनिया मे यहाँ, रहने लगा इन्सां।

बात कोई समझे, ना समझे , गिला नही,
परमजीत कुछ कहना था कह चले यहाँ।

Monday, October 11, 2010

काश! ऐसा हो सकता..............

हम वहीं हैं हम जहाँ थे इक कदम बढ़ पाये ना।
आँख का पानी तो सूखा सुख के बादल छाये ना।
हक के लिये जिसके, यहाँ इंसान देखो लड़ रहा,
दिल मे रहता है सभी के ये समझ उसे आये ना।


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जब भी
आकाश की ओर देखता हूँ
उसे मुस्कराता ही पाता हूँ
ना मालूम किस बात पर
वह इस तरह मुस्कराता है ?
जरा तुम भी सोचना....
मैं भी सोच रहा हूँ.......
वह किस घर मे समा सकता है??
यहीं सोच-सोच कर
अपना सिर नोंच रहा हूँ।


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यदि मेरे बस मे होता
ये मंदिर,मस्ज़िद,
गिरजे ,गु्रूद्वारे।
इस धरती से हटवा देता।
उस राम का,खुदा का,
निरंकार और जीसस का,
एक सुन्दर -सा घर
तेरे दिल मे बनवा देता।

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