Thursday, December 31, 2009

नये साल की आप सब को बधाई...



 अच्छा बहाना है, नया साल आया है।
मिलने का एक नया बहाना लाया है।


जो कहते थे हमसे कभी,वक्त नही है,
नये साल ने हमको उनसे मिलाया है।


मुँह फुला बैठा था जो हमसे बहुत दूर,
अपने अंह ने कर रखा था, मजबूर ।


नये साल की मुबारक पर मुस्कराया है।
अच्छा बहाना है, नया साल आया है।


बीत चुका जो उसका कुछ नही है मोल,
सही-गलत के तराजू पर न उसे तोल।


बिका हुआ माल किसीको कब भाया है?
अच्छा बहाना है, नया साल आया है।


Monday, December 21, 2009

अपने अपने सच....


                                                                                   (चित्र गुगुल से साभार)

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।
अपने अपने सच दोनों के,
दोनों को क्यों तौल रहे हो ?


जो मैने भुगता, उस को गाया।
जो तूने भुगता, उसे सुनाया।
दोनो अपनी अपनी कह कर,
अपना सिर क्यों नोंच रहे हो।


सुन्दर फूलो के संग अक्सर,
काँटे  मिल ही  जाते  हैं।
काँटों मे भी फूल खिले हैं,
कह कर क्युँ , शर्माते हैं।


फूलों पर भँवरें मंडराएं,  या
तितलीयां अपना नेह लुटाएं।
इक दूजे के पूरक बनकर
क्युँ ना ये संसार सजाएं।


बदली के संग पानी रहता।
फूलो संग गंध महक रही है।
शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये,
फिर क्युँकर अब बहक रही है ?


जिस पथ पर चलना चाहता मैं।
उसी पथ के तुम, अनुगामी हो।
आगे रहने की अभिलाषा मे,

क्युँ काँटो को  बिखराते हो।


आओ मिल कर साथ चलें हम।
अपने को कब खोल रहे हो?

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।


Tuesday, December 15, 2009

कोई घर ना फिर से उजड़ जाए.....


फिर कहीं राख को कोई कुरेद रहा।
चिंगारी कहीं कोई ना भड़क जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

बहुत सोच समझ कर उठाना ये कदम अपना।
कदम कदम पे बारूद मुझ को दिखता है।
आज पैसो की खातिर मेरे वतन मे यारों
जीना मरना भी यहाँ अब बिकता है।
कहीं मोहरा बन के उनके हाथों का,
कोड़ीयों के भाव ना कहीं तू बिक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

खेल ये खेलते है जिन की नजर कुर्सी हैं।
कुर्सी की खातिर जो सदा जीते मरते हैं।
जानता मैं भी हूँ ,तू भी जानता है उन्हें,
फिर क्यूँ उन की बात पर यकी करते हैं?
हरिक बार करते हैं वो सच का दावा,
कहीं उन के दावे पर ना तू बहक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

Monday, December 14, 2009

मुस्कराहट.....

एक पैकेट में ७ बन(ब्रेड) हैं.

मेरी पत्नी रोज आधा खाती है और मैं एक पूरा.

पहेली है कि ५ वें दिन कौन कितना खायेगा? (समीर जी की पोस्ट से साभार)

यदि पत्नी मेरी हुई तो....

पहले दिन ही पैकेट खत्म हो जाएगा।

स्त्री/ पुरूष विमर्श धरा रह जाएगा।

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एक पत्नी बोली -
मैं अपने पति को चार रोटियां खिलाती हूँ
लेकिन खुद एक ही खाती हूँ।
दूसरी ने कहा-
अच्छा है ,पति- धर्म ऐसे ही निभाया जाता है।
चार की एक और एक को चार जब बनाया जाता है।

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एक पत्नी ने दूसरी से कहा-
मेरे पति कभी किसी को
आँख उठा कर भी नही देखते....
दूसरी ने कहा-
बहन, मैं यह बात जानती हूँ और मानती हूँ ....
तुम्हारे पति से किसी औरत का कद बड़ा हो ही नही सकता।

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Thursday, December 10, 2009

मौहब्बत और फैंशन.



मौहब्बत से कहो, बातें तेरी सब मान लेते हैं।
मगर हर बात पर क्यूँ , हमारी जान लेते हैं।

बहुत उम्मीद थी, राहों में, चिरागे रोशनी होगी,
मगर हर बार अंधेरों का दामन थाम लेते हैं।

बहुत मजबूर हैं दिल से, यहाँ चलना जरूरी है,
ठहर जाए अगर कोई, मुर्दा मान लेते हैं।

अज़ब दस्तूर यारों दुनिया का ,अब चलन में है,
पैसों से मौहब्बत को, सभी पहचान लेते हैं।

वादों कसमों औ’ दिल की , कीमत नही लगती,
परमजीत तोड़ना इनको अब फैंशन मान लेते हैं।

Wednesday, November 25, 2009

आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम....


बस उम्मीदों के साये मे जी रहे हम।
आज अपना ही लहू पी रहे हैं हम।
कौन हमको हमसे बचाएगा यहाँ आज,
होठ सच के मिल यहाँ, सी रहे हैं हम।
घुट घुट के निकल रहा आज अपना दम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।

प्यार पैसा बन गया हर नजर में आज।
रिश्ते पैसों से बनें , कैसा है रिवाज़।
ईमानदारी चौराहे पर खड़ी हुई,
रोते रोते गा रही, बिठा रही है साज़।
अपना ही तमाशा आज देखते हैं हम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।

उलाहनें तुम्हें यहाँ बेईमान दे रहा।
तेरी बेबसी,वो रोटी अपनी सेंकता।
सहन करना तेरा, आज भाग्य है बना,
किस उम्मीद पर ऊपर तू है देखता?
खुदा की नजर भी तुझपे पड़ रही है कम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।

माँ-बाप बेटों पर आज बोझ बन गये।
कहीं पर माँ-बाप बेटो में हैं बँट गये।
लक्ष्मी समझ, जिसे खुशी से लाए थे घर,
आते ही उसके घर मातम से भर गये।
ये कैसी सोच से यारों भर गए हैं हम?
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।

Friday, November 6, 2009

ऐसा क्यो होता है........

(फोटो अनाम स्त्रोत)

जो बात हमारे अपने देश मे हजारो सालों से मान्य है ,उसी बात को जब विदेशी मोहर लग जाती है तो वह अध्ययन का विषय बन जाती है।.....वर्ना हमारे देश मे ऐसे बातों को मानने वालो को अंधविश्वासी कहा जाता है।

आध्यात्म और विज्ञान-......
पोस्ट लिखी थी। उसी दिन एक पोस्ट और पढ़ने को मिली।लेकिन उस पोस्ट को उस पर ब्लोग मे पढ़ कर अजीब लगा। क्योकि उस ब्लोग को पढ़ कर मुझे हमेशा लगा कि उस का उद्देश्य ही "अंधविश्चास उन्मूलन अभियान है"...पता नही मुझे ऐसा महसूस होता है कि हम स्वयं पर कभी भरोसा नही कर पाते। हम उन बातो को भी प्रमाण मागँने लगते है जो मात्र अनुभव या स्व अनुभूति पर निर्भर करती हैं।लेकिन जब उन्हीं मान्यताओ का अध्ययन उन्नत देश या विदेशी वैज्ञानिक करने लगते हैं तो वह हमारे लिए मान्य होने लगता है। ऐसा क्यो होता है ?आप अपने विचार बताएं।

शेष फिर कभी.......

Thursday, November 5, 2009

आध्यात्म और विज्ञान- बुनियादी फर्क



जिस
बात का ज्ञान हमे नही होता उस बात को पूरी तरह से नकार देना मूडता है। यदि ऐसा होता तो आज विज्ञान इतना उन्नत ना होता।लेकिन फिर भी कुछ बातों को नकारने से पहले हम कभी विचार करना ही नही चाहते।सामने वाले का सीधा प्रश्न होता है साबित करके दिखाओ। जबकि वह यह जानना ही नही चाहते कि हर बात को एक ही नियम के आधार पर साबित नही किया जा सकता।यहाँ इस बात को कहने का अभिप्राय यह है कि आध्यात्म और विज्ञान दोनों में बुनियादी फर्क है। जिस कारण उसे विज्ञान की भाँति साबित नही किया जा सकता।

पिछली पोस्ट यह अंधविश्वास नही है पर आई.... में आपको बताया गया था कि विज्ञान का आधार तर्क है और आध्यातम का आधार अनुभव। इस के अलावा एक और अंतर भी है कि विज्ञान प्रत्येक बात को तोड़ तोड़ कर जानने की कोशिश करता है जबकि आध्यात्म हर बात को जोड़ जोड़ कर जानने की कोशिश करता है।तीसरा बुनियादी फर्क यह है कि विज्ञान की कोई खोज या अविष्कार होने पर वह खोज सार्वजनिक हो जाती है, वहीं आध्यात्म के रास्ते पर चलने वाले की खोज व्यक्तिगत ही रहती है।चौथा फर्क यह है कि आध्यात्म पर चलने वाले की खोज (सिद्धि) का लाभ खोजने वाले (साधक या जानकार) की मदद के बिना नही उठाया जा सकता...जबकि विज्ञान की खोज कोई भी करे उस का लाभ सभी उठा सकते हैं।पाँचवां फर्क यह है कि विज्ञान की खोज का गलत प्रयोग का फल यह जरूरी नही है कि खोजकर्ता को भुगतना पड़े।जबकि आध्यात्म की खोज (सिद्धि) का गलत प्रयोग करने वाले खोजकर्ता (साधक या जानकार) को और खोज का लाभ उठाने वाले दोनों को ही भुगतना पड़ता है। यह सब जानकारी इस विधा के जानकारों की दी हुई ही है।

उपरोक्त जानकारी इस लिए दी गई है ताकि विज्ञान और आध्यात्म के बुनियादी फर्क को समझा जा सके। यहाँ पर पिछली पोस्ट पर आई एक टिप्पणी का जवाब देना चाहुँगा। क्योकि वह यह समझते हैं कि यहाँ पर मैं किसी एक पक्ष पर ही जोर देने की चैष्टा कर रहा हूँ। यहाँ पर स्पष्ट करना चाहुँगा कि मै एक जिज्ञासु हूँ......मैने बहुत कुछ अब तक के अपने जीवन में अपनी आँखो के सामने घटते देखा है जिसने मुझे अचंभित किया.....इसी लिए इस तह तक जाने की अभिलाषा मुझे है।

अब टिप्पणी की बात जो कि पिछली पोस्ट .यह अंधविश्वास नही है पर आई.... पर दी गई थी-:

@ योगेश जी, सिर्फ किसी बात से सहमत ना होने से कोई बात नही बनती।आप ने लिखा है कि"इलेक्ट्रोन कीको साबित किया जा सकता है। इलेक्ट्रोन दिखाई इस लिये नहीं देता क्योंकि ज्यों ही उस पर light डालते हैं वो light energy से vibrate हो जाता है।"

यही बात परमात्मा को मानने वाला भी कहता है, वह कहता है कि जब साधक साधना द्वारा परमात्मा में विलीन हो जाता है तो उसका उस समय स्व नष्ट हो जाता है जिस कारण वह उस के बारे में नही बता पाता। दूसरी बात वह दिखाई इस लिए नही देता कि वह एक अनुभव है अनुभूती है। लगता है आपने लेख ध्यान से नही पढ़ा।

वहाँ स्पष्ट लिखा है कि विज्ञान और आध्यातम मे कुछ बुनियादी फर्क हैं। पहला तो यही है कि विज्ञान का आधार तर्क है और आध्यात्म का आधार अनुभव।
तीसरी बात आप ने कही"इलेक्ट्रोन को आधार ले कर वैज्ञानिकों ने सैंकड़ों और नई theories दी हैं, जिससे हमने कईं और नये राज़ खोले हैं" इसी तरह आध्यातम ने भी कई राज जानें हैं...जिस मे से एक है सम्मोहन विधा...यदिवैज्ञानिक भाषा मे कहे तो हिप्नोटिज्म, मैस्मैराइज.....जिसे विज्ञान भी स्वीकारता है.....जो की मात्र भावना परआधारित है। यह खोज किसी इलेक्ट्रोन से नही की गई....यह अनुभव के आधार पर स्थापित की गई है।

चौथी बात आपने कही "आपकी पोस्ट से साफ झलक रहा है, that you post is biased towards GOD and bhoot pret."

यहाँ पर किसी बात का पक्ष नही लिआ जा रहा....पता नही आपने किस आधार पर ऐसा सोचा? यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ, कि मै विज्ञान का विरोधी नही हूँ.....क्या मुझे यह मालूम नही कि जिस माध्यम से हम आपस मे जुड़े हुए है वह विज्ञान की ही देन है ? जरा विचारीए की आपकी कही बात किस पर लागू होती है? आप को समझ जाएगा।
शेष फिर किसी पोस्ट में......

Tuesday, November 3, 2009

यह अंधविश्वास नही है . पर आई टिप्पणीयों पर आधारित...




पिछली पोस्ट यह अंधविश्वास नही है... पर आई टिप्पणीयों पर आधारित...

आध्यात्म और विज्ञान मे एक बुनियादी अंतर है। आध्यात्म से प्राप्त अनुभव या उपलब्धी व्यक्तिगत होती है और विज्ञान की उपलब्धी सार्जनिक। इसी लिए आध्यात्म मे प्राप्त अनुभव या उपलब्धी को दूसरो के सामने रखा नही जा सकता। ऐसा मानना है आध्यात्मिक लोगो का। दूसरी बात यह की किसी बात को कितने लोग सही या गलतमानते हैं, इस से सही और गलत को तौला नही जा सकता। एक मित्र कहते है कि "विज्ञान का आधार तर्क है।"

वहीं दुसरे आध्यात्मिक लोग यह मानते हैं कि "आध्यात्म का आधार अनुभव है।

इसी लिए इसे प्रमाणित नही किया जा सकता। उन्होने जैसा अनुभव किया उसे सत्य माना और अनुभव स्वयं ही पाया जा सकता है.....कोई किसी का अनुभव बिना उस अनुभव मे उतरे जान नही सकता। यह ठीक वैसे ही है जैसे हम सर्दी गर्मी को, हवा को महसूस तो कर सकते हैं लेकिन देख नही सकते।

यहाँ में कहीं पढ़ी हुई बात लिख रहा हूँ मुझे याद नही मैने कहाँ पढ़ी थी शायद ओशो की किसी पुस्तक में----

"इलेक्ट्रोन दिखाई नही पड़ता लेकिन वैज्ञानिक उन्हें मानता है लेकिन परमात्मा भी दिखाई
नही देता लेकिन वह उसे नही मानता।

इलैक्ट्रोन का प्रभाव को मानता है लेकिन परमात्मा को जिस ने इतनी बड़ी सृष्टि बनाई उसे मानने से इंकार करता है।यही आदमी की मूडता है।"

ठीक इसी तरह तंत्र-मंत्र आध्यात्म के जानकार जिन बातों पर विश्वास करते हैं......यह उन का अपना निजी अनुभव है.....इस लिए इसे अंधविश्वास कि श्रैणी में नही रखा जा सकता। क्योकि अंधविश्वास तो वह है जो अनुभव ही नही किया गया,......और उसे मान लिया गया हो।

यह बात अलग है कि अपना अनुभव किसी के सामनें साबित नही किया जा सकता। जैसे किसी के शरीर मे पीड़ा हो रही है तो उसके हावभाव से यह अनुमान लगा लिआ जाता है कि इसे पीड़ा हो रही है जब की पीड़ा दि्खाई नही देती। अब यदि पीड़ा दिखाई नही देती तो क्या यह मान लिया जाए की पीड़ा होती ही नही....।

यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा......तंत्र-मंत्र, भूत, आत्मा व परमात्मा आदि को यहाँ आध्यात्मिकता की श्रैणी में रख कर ही विचार किया जा रहा है।आप अपने विचारो से अवगत कराते रहें। शेष फिर कभी...

Monday, November 2, 2009

यह अंधविश्वास नही है.....


(गुगुल से साभार)
भूत होते हैं....

कोई भी विश्वास बिना कारण नही बनता।यदि ऐसा होता है तो संभव है वह विश्वास कभी ना कभी कमजोर साबित हो ही जाएगा। जब आप बीमार होते हैं तो किसी चिकित्सक को खोजते हैं...आप को जो ठीक कर देता है वही योग्य चिकित्सक हो जाता है।भले ही जिसने आपको ठीक किया है वह वास्तव में झोला छाप चिकित्सक ही क्यों नाहो।आप की नजर मे वह एक योग्य चिकित्सक की छवि बना लेता है। कहने का मतलब यह है कि यह जरूरी नही है कि आप जो बात विश्वास से कहते हैं वह सही हो....क्योंकि हम निरन्तर कुछ नया सीखते रहते हैं...जब हमे पता चलता है कि हम जिस पर विश्वास कर के बैठे हुए थे...वह वास्तव में सही नही था....तो आपको फिर नये ढंग से विचार करना पड़ता है पुन: अपनी बात पर गौर करना पड़ता है।यह सब इस लिए कह रहा हूँ की संभंव है आज जो लोग तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत आदि के अस्तित्व को नकारते है,उसे अंधविश्वास कहते हैं। भविष्य मे वही इस की खोज में जुट जाए....दूसरी और जो इस पर विश्वास करते हैं संभव है वह इसे भविष्य में अपनी नासमझी मानने लगें। इस बात का निर्णय होनें में बहुत लम्बा समय लगने वाला है। सत्य क्या है यह अभी भविष्य के गर्भ मे छुपा हुआ है।लेकिन आज जिसे अंधविश्वास माना जाता है वह तंत्र मंत्र भूतो के जानकारों का विश्वास बना हुआ है।

मेरी पिछली पोस्ट भूत होते हैं.... पर मैनें लिखा था कि इस विषय पर बाद मे लिखूँगा। वास्तव में बहुत से लोग ऐसी बातों को अंधविश्वास के रूप मे ही देखते हैं। लेकिन यहाँ पर यह बात देखने वाली है कि क्या आप ऐसे जानकार लोगो से कभी मिले हैं ?....आप ऐसे जानकार कितनें लोगों से मिले हैं ?....संभव है ज्यादातर ऐसे लोग होगें जो ऐसे लोगो से मिले ही नही होगें।....बस उन्होने सुनी सुनाई बाते दोहराना शुरू कर दिया है कि यह सब बेकार के ढ्कोसले हैं। इन बातों का कोई सार नही है। उन मे एक ही चाह है कि कोई उन्हें अंधविश्वासी या मानसिक रोगी ना मानले।लेकिन जो लोग ऐसी समस्याओ से पीड़ित रहे हैं ,भुगत भोगी है। उन्हें ऐसी बातों पर पूरा विश्वास है। भले ही आधुनिकता अपने आप को बुद्धिमान मानने वाले इन्हें किसी ना किसी मानसिक रोग से ग्रस्त मानते रहे। यहाँ यह नही कहना चाहता कि मानसिक रोग नही होते.....वह भी होते हैं जो दवा दारू से ही ठीक होते हैं......लेकिन इसबात से इंन्कार भी नही किया जा सकता कि कुछ समस्याएं मात्र मंत्र-तंत्र या भूतादि से संबधित भी होती हैं। जिनका ईलाज इन विधाओ के जानकारों के पास ही संभंव होता है।

यहाँ एक बात कि ओर और ध्यान दिलाना चाहूँगा...जिस प्रकार आज असली चिकित्सकों के साथ झोलाछाप चिकित्सकों की भरमार है....उसी तरह ऐसे जानकारों में बहुधा ऐसे लोग हैं जो इस विषय की कोई जानकारी नही रखते....लेकिन उन की दुकानें उसी तरह चल रही हैं जैसे हमारे यहाँ झोलाछाप चिकित्सकों की चलती हैं। इस कारण से भी कई लोग ऐसी बातो पर विश्वास नही करते।लेकिन ऐसी बातों से चिकित्सक ऐसे जानकारों की विश्वसनीयता कम नही हो जाती।

भूतादि तंत्र-मंत्र पर विश्वास मात्र हमारे देश में ही नही सारी दुनिया मे ऐसे लोग आप को मिल जाएगें जो इन पर विश्वास करते हैं। हमारे कुछ बुद्धिजीवी भाई बहन ऐसा भी मानते है कि ऐसी बातों पर विश्वास करने वाले अधिकतर अनपढ़ या गरीब तबके के लोग ही ज्यादा होते हैं। लेकिन विदेशों में पोप या सम्मानित फादर को भी आप इनसे पीड़ित लोगों का ईलाज करते पा सकते हैं और यह देश विकसित देश हैं।बाइबल हिन्दू धर्म ग्रंथों कुरआन में इन से छुटकारा पानें के लिए अनेक प्रार्थनाएं कलमे मौजूद हैं। ऐसे में आप क्या इन्हें अंधविश्च्वास कहेगें। अपने विचार जरूर बताएं। शेष फिर किसी पोस्ट मे लिखूँगा।

Friday, October 30, 2009

भूत होते हैं....


आज एक पोस्ट पढ़ी "भूत प्रेत होते हैं या नही" इसी लिए इस विषय पर लिखने का विचार बन गया।

भूत या आत्मा कुछ भी कहे लेकिन यह होते हैं ऐसा सभी धार्मिक ग्रंथ कहते हैं।गीता में आत्मा के बारे में कहा गया है। ईसाई आत्मा या कहे शैतान और फरिश्तों को मानते हैं।मुसलमान पीर और जिन्न परी भूतादि को मानते हैं।...अब या तो यह मान लें कि इन ग्रंथो में कही बाते असत्य है......या फिर सत्य हैं.....।

सिर्फ किसी चीज को नकार देने से किसी का अस्तित्व समाप्त नही हो सकता और जो नही है उसे स्वीकार कर लेने से वह हो नही सकती यदि वह नही हैं तो।

वास्तव में अभी इस पर बहुत शोध करने पड़ेगें ।तभी कुछ प्रमाणिकता से कहा जा सकेगा।विज्ञानिक इस कार्य में जुटे हुए हैं.....वह अभी ना तो इस बात से इन्कार करते हैं कि यह आत्मा,भूता आदि नही होते और ना अभी इस बात को पूरी तरह स्वीकार करते हैं कि होते हैं।

जहाँ तक जो लोग इन के होनें का प्रमाण देते हैं....वह इन से त्रस्त होने पर ही ऐसा कहते हैं उन के अनुसार यह सब भूतादि होते हैं। बहुत से लोग इन्हें देखने का भी दावा करते हैं।

एक बार बिस्मिल्ला खाँ (शहनाईवादक) ने भी एक किस्सा सुनाया था कि वह अपने जवानी के दिनों में एक खडंहर मे अपना शहनाई का रियाज़ बहुत दिनों से किया करते थे तो एक दिन अचानक एक वानर जैसा बड़ा सा आदमी उन के सामनें अचानक प्रकट हो गया ।जिसे देख वह कहते हैं कि मैं डर गया था। लेकिन उस वानर से दिखने वाले आदमी ने उन्हें आशिर्वाद दिया की तुम्हें शहनाई में बहुत यश मिलेगा।वह वानर-सा आदमी आशिर्वाद दे कर आलोप हो गया।उन्होने आगे बताया कि मुझे बाद में पता चला कि मैं जिस खडंहर में अपना रियाज़ करता था वहाँ पहले हनुमान जी का मंदिर था।अब यह बात सत्य है या असत्य वही कह सकते थे।

दूसरी और जो लोग इन के जानकार कहे जाते हैं वह इन्हें पूरी तरह दावे के साथ स्वीकारते हैं......लेकिन वह किसी बात का प्रमाण नही देना चाहते। उन के अनुसार यह एक गुप्त विधा है....जो गुरू द्वारा अपने शिष्य को ही बताई जाती है।उन के अनुसार यदि कोई इन्हें देखना चाहता है तो पहले कोई साधना करनी पड़ती है....तभी कोई इन्हें देख सकता है।....इस तरह का दावा करने वाले हरिद्वार रिसिकेश में स्वर्गाश्रम के पीछे लगे जंगलों मे रहने वाले अनेक साधु-बाबा वहाँ मिल जाएगें। जिन के पास कुछ ऐसा जरूर है जो प्रभावित करता है।अचंभित करता है।

कुछ लोग मानते हैं कि इन भूतादि को कुत्ते बिल्ली आदि जानवर आसानी से देख लेते हैं। उन्हे देख कर वे अजीब तरह से आवाजे निकालने लगते हैं....जैसे कोई रो रहा हो।यह बात तो ज्यादातर सभी के आस-पास जरूर जरूर देखने को मिलती रहती होगी। हमने भी कई बार रात को कुत्तों को अजीब -सी आवाज मे रोते देखा है...और उसे भयभीत होते देखा है........अब वह किस से भयभीत होता है यह तो वही जानें।इस विषय में बाकि फिर कभी लिखेगें....हमारे पास ऐसे ढेरों किस्से है जो हमारे सामने ही घटित होते रहे। उन के बारे में फिर कभी किसी पोस्ट में लिखते रहेगें।


आप इस बारे में क्या सोचते हैं टिप्पणीयों द्वारा जरूर बताएं।



Saturday, October 17, 2009

फिर जल जाएँगे दीपक..........


PhotobucketPhotobucketPhotobucketPhotobucketPhotobucket
फिर जल जाएँगे दीपक रात जरा गहरी होने दो।
पहले आँखों के आँसू को पूरा तो मुझको पीने दो।

बहुत लगन से देख रहा था सपनो का आकाश मैं
गहरे सागर में भटक रहा था मोती की तलाश में
मोती की चाहत में मुझसे कुछ ऐसा था छूट गया
मेरे जीवन के सब रंगों को जैसे कोई लूट गया
उस अभाव की जरा पूर्ति तुम पहले तो होने दो।
फिर जल जाएँगे दीपक रात जरा गहरी होने दो।
पहले आँखों के आँसू को पूरा तो मुझको पीने दो।

खेल समय का बड़ा निराला सबको खेल खिलाया है
एक हाथ से अमृत देता, दूजे से जहर पिलाया है
अमृत विष विष कब अमृत, जीवन में हो जाएगा
क्या कोई इस रहस्य को जरा हमको भी समझाएगा
कुछ ठहरो, जरा प्रश्न का उत्तर तो पहले आने दो।
फिर जल जाएँगे दीपक रात जरा गहरी होने दो।
पहले आँखों के आँसू को पूरा तो मुझको पीने दो।

संबधों के धागे हमको, क्यूँ अब कच्चे लगते हैं
बात हमारी जो ना माने क्यूँ सब बच्चे लगते हैं
धन दौलत के कारण सारे रिश्ते जीते मरते हैं
धोखा देते हैं लेकिन , दम विश्वास का भरते हैं।
विश्वास हमारा मर जाता है प्रतिकूल कोई, जब हो।
फिर जल जाएँगे दीपक रात जरा गहरी होने दो।
पहले आँखों के आँसू को पूरा तो मुझको पीने दो।

Friday, October 2, 2009

एक मुर्गे की मौत


ज्यादा पुरानी बात नही है। उन दिनों एक कच्ची कालोनी में रहता था। हमारे पड़ोस मे रहनें वाले एक परिवार ने बहुत मुर्गीयां पाल रखी थी।उन मे कुछ मुर्गे तो बहुत तगड़े थे कि हर कोई उन से बच कर निकलने मे ही अपनी भलाई समझता था।एक बार पता नही कैसे एक बड़े मुर्गे की टाँग टूट गई।वह मुर्गा सब मुर्गे से ज्यादा बलवान था।अब जब उस की टाँग टूट गई तो हमारे पड़ोसी ने सोचा, कि क्यूँ ना इसे बेच दिया जाए। बस फिर क्या था वह उसे बेचनें की बात कई लोगों से की।लेकिन बात बनी नही,क्यों कि वह मुर्गा तीन किलो का था।इस कारण उस की कीमत भी ज्यादा थी। कोई अकेला परिवार उसे खरीद नही सकता था।
मु्र्गे
का मालिक जानता था कि यह मुर्गा ज्यादा दिनों तक जीवित नही रहेगा। इस लिए वह जल्दी ही उसे बेचना चाहता था।

मालिक का अच्छा समय था, या फिर मुर्गे का बुरा समय था। क्योंकि एक दिन बाद ही कालोनी के लड़कों ने आपस में एक क्रिकेट का मैच रख लिया। साथ में एक शर्त भी रख ली। कि जो भी मैच जीतेगा,उसे हारनें वाले खिलाड़ी को मुर्गा भोज देगा।बात तय हो गई और अगले दिन मैच के समय बहुत भीड़ हो गई।कालोनी वाले आपस मे शर्ते लगा रहे थे कि कौन- सी टीम मैच जीतेगी।

आखिर सारा दिन मैच खेला गया, और आखिर में दूसरे लड़्कों ने मैच जीत लिया। लेकिन जो टीम हारी उस टीम में मुर्गा मालिक का बेटा भी था। अब मुर्गे के भोज की तैयारी शुरू हो गई। लेकिन एक समस्या पैदा हो गई कि आखिर इस मुर्गे को मारेगा कौन?सभी ने कहा, कि पराजय वाला ही मुर्गे को मार कर बनाएगा।अब मुर्गे का मालिक फँस गया।क्यो कि उस का बेटा पराजित टीम में था,अतः उसी ने उस मुर्गे को मारनें का काम सम्भाल लिया।

मुर्गे को मारे के लिए मुर्गे का मालिक उसे पंखो से पकड़कर बाहर ले आया।लेकिन मुर्गा बहुत उछल कूद मचा रहा था।आखिर बड़ी मुश्किल से उसे काबू में किया गया।मुर्गा बहुत जोर से चिल्ला रहा था ।उस की गर्दन को काटा हुआ देखने के लिए बहुत से लोग एकत्र हो गए थे। जैसे ही उस की गर्दन काटी गई,मुर्गा तेजी से कूदा और मुर्गा मालिक के हाथ से छूट गया।मुर्गे की गर्दन तो वहीं पड़ी रही लेकिन.... मुर्गे ने बिना गरदन के ही दोड़ना शुरू कर दिया यह सब देख कर वहाँ एक अनोखा तमाशा बन गया।सभी जोर-जोर से हँस रहे थे।लेकिन पता नही यह सब देख कर ,मुझे हँसी नही आई ,बल्कि उन सब हँसी उड़ाने वालो पर गुस्सा आया ।मुझे उस मुर्गे पर तरस आ रहा था।

वह बेचारा मुर्गा एक-दो मिनट तक भागता रहा। और अन्त में गिर गया। पता नही इतने साल बीत जाने पर भी मै उस घटना को भूल नही पाया। इसी लिए उस घटना को यहाँ लिख रहा हूँ। मै नही जानता ,..आपको यह सब घटना कैसी लगेगी?