Thursday, June 26, 2014

बस! तुम साक्षी रहना...




रिक्तता का बोध
कितनी बड़ी बात है।
लेकिन होता कहाँ हैं....
भीतर तो चलता रहता है...
भावों का...
कल्पनाओं का..
एक अनवरत तूफान।
सोचता हूँ....
किसी दिन 
इस का बोध होगा.
मैं इसे देख पाऊँगा...
महसूस कर पाऊँगा...।
शायद...
हाँ..
या...
नहीं...
कहना कितना कठिन है।
बस! तुम साक्षी रहना।
मेरे होने या ना होने का
कभी कोई ...
महत्व ही कहाँ था।