Tuesday, July 24, 2012

जिस्मानी और रूहानी प्रेम

 

 

 प्रेम की कसोटी

तुम मुझ से
कोई प्रश्न मत पूछना
मैं भी तुमसे 
कोई प्रश्न नही पूछूँगा...
मुझे बस!
तुम्हारा उत्तर चहिए। 
जो हम दोनों के लिये हो।


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तुम्हारा ख़त
मैनें आज भी
संभाल कर रखा है
मैं रोज उसे पढता हूँ
हर बार कुछ नया
पढ़नें को मिलता है..
क्योंकि तुम्हारा ख़त
शब्द की सीमाओं में
बँधा हुआ नही है
 और मैं भी उसे
आँखों से नही पढ़ पाता।


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जिस्मानी और रूहानी प्रेम 
दोनों में बहुत फर्क है।
जैसे मृत्यू और अमरता में।
एक प्रेम बंधन है 
दूसरा मुक्ति।
लेकिन इन्सानी स्वाभाव...
वह पहले उसे ही चुनता है...
जिसका उसे स्पर्श  महसूस हो सके 
आँखों से दिखाई दे...
क्योंकि वह स्वयं 
जिस्मानी बधंन में बँधा हुआ है.....
लेकिन एक दिन ऐसा 
जरूर आता है जीवन में....
जब नदी अपने तटों को तोड़ कर...
स्वछंद विचरना चाहती है.... 
यही  आकुलता 
उसे ले जाती है 
उस प्रेम के सागर की ओर...
जहाँ पहुँचकर 
नदी अपना स्व विस्मृत कर....
खो जाती है जहाँ उसे खोना चाहिए...

हरिक सीमा कहीं आकर टूट ही जाती है.....
जहाँ पहुँचकर उसे टूटना चाहिए

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Monday, July 9, 2012

क्या करें........




इक दिन आना है उसे क्या इंतजार करें।
बेरंग जिन्दगी में ,   चलो कोई रंग भरें।
वैसे भी हमे मंजिल का कोई पता नही,
बस! चलो,चलना है , रुक के क्या करें।

ठहर पाया है कौन , इक पल   भी यहाँ।
साँसो की डोरी,वक्त, रूकता है कब कहाँ।
जब कुछ नही है हाथ तेरे कोई क्या करे-
बस! इंतजार करता रहता है ये  जहां।