Tuesday, June 26, 2012

पिता की याद में



वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले ,  देख हँस गये।

ताउम्र इस अदाको समझना हुआ मुश्किल,
जाने से पहले मुझको वो कैसे कस गये।

सोचता रहता हूँ ..हँसी का है राज क्या।
लौटकर आयेगें क्या ऐसा कुछ कहा।

आज भी राह तक रहा हूँ यार, तुम्हारी ,
क्यूँ छॊड़ तन्हा ,जहां से तू चला गया।

गुरू दोस्त सारथी मेरा आसरा थे तुम।
बीच रास्ते पर छॊड़ क्यों हुए तुम गुम।

बहार आने को थी कुछ ठहर तो जाते,
क्या कमी थी प्रेम में जो ऐसे डस गये।

वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले ,  देख हँस गये।

Monday, June 4, 2012

तीन अनुत्तरित प्रश्न




अनुत्तरित प्रश्न-१

हर खेल
जीतने के लिये
खेला जाता है।
फिर क्यूँ.....
हम अपने जीवन को
हार कर जाते हैं ?
अंत मे अपने को
अकेला पाते हैं।

अनुत्तरित प्रश्न-२

अपनी थाली का लड्डु
हमेशा छोटा क्यों लगता है?
इंसान के मन में
ऐसा भाव क्यों जगता है ?


अनुत्तरित प्रश्न-३

इन्सान किस लिये आता है?
फिर कहाँ चला ये जाता है?
जीवन -भर दोड़ लगाता है।
दोड़-दोड़ थक जाता है।
कहीं पहुँच नही पाता है।
खुशी मे मुस्कराता है।
गम में आँसू बहाता है।
बेमतलब के इस जीवन को,
फिर भी जीना चाहता है।