अब क्या सुनाएं कहने को कुछ नही यहाँ।
जब जान ली हकीकत, जाएगें अब कहाँ ?
बस खेल है खुदा का, वही खेले रात -दिन,
नासमझ, अपना समझ, बैठे थे ये जहाँ।
कोई जगाए, तो बुरा ,हमको बहुत लगे,
कैसी दुनिया मे यहाँ, रहने लगा इन्सां।
बात कोई समझे, ना समझे , गिला नही,
परमजीत कुछ कहना था कह चले यहाँ।