Sunday, September 9, 2007

नदिया के गीत

१.


बहती है नदिया

चलते रहो तुम

चलते रहो तुम

कहती है नदिया


आएं जो खाई

उसको तुम पाटो

शंख-सीपियां

दुनिया को बाँटों

हसँती है नदिया

मध्य धाराओं के

बसती है नदिया

दो किनारों में

चंचल-सी इठलाती

अपना-सा स्वर गाती

लहराती साँपो-सी

अपनी ही मस्ती मे

चलती है नदिया

२.

इक नदिया भीतर है

मन के भावों संग

लहर -बहर चलती है

कविता बन फलती है।

5 comments:

  1. "इक नदिया भीतर है
    मन के भावों संग
    लहर -बहर चलती है
    कविता बन फलती है। "

    बहुत सही कहा

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  2. आपकी प्रस्तुति वेहद -वेहद प्रशंसनीय है. शब्द और बिंब में ग़ज़ब का तालमेल. बहुत -बहुत वधाईयाँ .

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  3. इक नदिया भीतर है

    मन के भावों संग

    लहर -बहर चलती है

    कविता बन फलती है।

    वाह बाली जी बहुत दिनों के बाद आपको पढ़ा है, बहुत अच्छा लगा

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  4. इक नदिया भीतर है

    मन के भावों संग

    लहर -बहर चलती है

    कविता बन फलती है।
    ---------------
    अच्छा लगा
    दीपक भारतदीप

    ReplyDelete

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