Wednesday, October 31, 2007

बचाव

आग को लगनें दो
आग से रोशनी फैलेगी

तभी नजर आएगा

कि हमारे आस-पास

क्या हो रहा है।

इस की परवाह

कौन करता है-

कि यह आग

किस के घर पर लगी है।

यह आग

जिस के कहनें पर

हम लगाते हैं।

उस की नजर

हमारे घर पर भी है।

इस आग में

जलते अरमा,इंसा और...

चीखते घरों का बोझ

हमारे सर पर भी है।

इस आग से बचना है तो

इस आग से मत खेलों।

जिस के कहनें पर

आग लगाते हो

उसे मत झेलों।

3 comments:

  1. इस आग से बचना है तो
    इस आग से मत खेलों।
    जिस के कहनें पर
    आग लगाते हो
    उसे मत झेलों।

    ---बहुत ही सुन्दर संदेश देती रचना. आज ऐसी कविताओं की जरुरत है, परमजीत भाई. सार्थक प्रयास के लिये साधुवाद.

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  2. क्या बात है?
    दीपक भारतदीप

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  3. जो ये आग लगाते हैं उन्हें हम क्रांतिकारी कहते हैं, और जो इनमें जल जाते हैं उन्हें शहीद।
    पर जो उकसाते हैं उनके लिए कोई पावन नाम नहीं हैं।

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