Friday, February 22, 2008

आनंद उत्सव

कोई अज्ञात भय
जो सदा रहता है घेरे चारो ओर
उसी से बचनें की आशा में
हम बस भागते रहते हैं।
नही जानते कहाँ जाना है,
कहाँ जा रहे हैं?
इन दिशाविहीन रास्तों पर,
जो कभी हमें कहीं पहुँचाते भी नही,
इन पर चलते हुए ऐसा महसूस होता है-
हम एक ही जगह खड़े-खड़े,
कदमताल करते रह जाते हैं।
जहाँ से चले थे
वहीं अपनें को पाते हैं।

लेकिन सब प्रयास करनें पर भी,
भय नही मिटता!
हमारे सारे प्रयास
इसी भय से मुक्त होनें की खातिर
हमें और भी भटकाते हैं,
हमारा भय को और भी बढाते हैं।

आओ! सब मिलकर
इस अज्ञात भय में कूद जाएं।
मिलकर एक नया
आनंद उत्सव मनाएं।

4 comments:

  1. kafii samay upraant aap kii kavita padii achchaa lagaa

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  2. ajat agyat bhay sab ke man mein hota hai,usse picha chudale,anand utsav manale,bahut sundar kavita.

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  3. अध्यात्म की तरफ मुड़ने लगे हैं, अच्छी बात है.
    दीपक भारतदीप

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