Monday, August 3, 2009

तुम क्यूँ जिन्दा हो......


दूसरों का दुख देख कर
आँख तब तक नही रोती
जब तक कोई पीड़ा
तुम्हारे भीतर
पहले से नही सोती।

इस समुंद्र के किनारे
रेत में क्या खोज रहे हो
उसे नही पाओगे।
समय की लहरें
हमेशा की तरह उसे बहा कर
अपने साथ ले गई होगीं
कहीं दूर, बहुत गहरे में,
किसी पत्थर के नीचे पड़ी या दबी
वह सिसकियां भर रही होगी।
क्युंकि अब समुंद्र में अक्सर
तूफान उठता रहता है।
जिसका शोर,जिस का बहाव,
कहीं ठहरने नही देता।
अत: उस के होने का एहसास
नही हो पाता।
जबकि जानता हूँ
वह मौजूद है।
बस बाहर वालों को ,
कभी नही दिखती।

वह तुम्हारे भीतर भी है।
मेरे भीतर भी है।
उसके भीतर भी है ।
लेकिन सब अन्जान बनें,
आपस मे बतियाते रहते हैं।
सब ठीक ठाक है-
एक दूसरे से कहते हैं।

उसे जानना चाहते हो तो-
जरा भीतर झाँकों
जान जाओगें।
तुम क्युं जिन्दा हो
जान जाओगे।

39 comments:

  1. बहुत उम्दा भाव!! बेहतरीन रचा है!

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  2. अच्छे भाव की रचना। सुन्दर प्रस्तुति।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. क्या बात है! आपके इन पंक्तियों पर यह कहने का मन करता है
    दीपक भारतदीप
    ---------------------------
    आँखों से देखे का अहसास
    कौन कराता है
    कानों से सुने का
    अर्थ कौन समझाता है
    हाथों से छुए का स्पर्श कौन दिखाता है
    मुहँ के पकवान का
    स्वाद कौन उठाता है
    अरे, उस अंतर्मन को तुम नहीं जानते
    इसलिए भटकते हुए
    जिंदगी की राह चले जा रहे हो
    अपनी अंहकार की अग्नि में जले जा रहे हो
    बोलता नहीं है वह
    पर होकर मौन तुम्हें रास्ता दिखाता है
    --------------------------------

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  4. दर्द से गुजरनेवाला दर्द समझता है.........
    बहुत उम्दा

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  5. दर्द lajne के लिए........ सच कहा पहले दर्द से guzarna padhta है............ bahoot ही achhee, shashakt रचना है .....

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  6. बहुत सुन्दर रचना,

    दुसरो का दुख देखकर...

    बहुत सुन्दर भाव को समेटी पन्क्ति

    सादर

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  7. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति।

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  8. बहुत बहुत ही सुन्दर .......बधाई

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  9. बेहतरीन! जानना है तो अपने अन्दर झांको!

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  10. किसी दोस्त की तरह रह गयी मेरे दिल में
    ---
    1. चाँद, बादल और शाम
    2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

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  11. आपकी कविता से सहमत हू
    किसी दुसरे को जानने से पहले खुद को जानना जरुरी है..इसके लिए खुद के भीतर झांकना होगा

    तभी तो कहा गया है घूँघट के पट खोल तो पिय मिलेंगे

    http://som-ras.blogspot.com

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  12. बिलकुल सही कहा है जब तक आदमी अपने अंदर नहीं झाँकता तब तक दूसरे के दर्द को कैसे जानेगा बहुत उम्दा और विचार्णीय रचना है आभार््

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  13. अच्छे भाव। लिखते रहिये।
    हैं भंवर इसमें कई तूफ़ान इसमें
    शांत ऊपर से नज़र आता samandar.
    dr jagmohan rai

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  14. wah भावात्मक अभिव्यक्ति... वाह.. साधुवाद.

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  15. संवेदनशीलता ही जीवन को जीने लायक बनाती है.

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  16. परमजीत साहब, आप अपनी कविताओं में अंदर तक झकझोर देते हैं। इतना गहरा लिखेंगे, हमारी सांस लेनी भारी पड़ जाएगी सरकार। उम्दा रचना। पंक्ति दर पंक्ति गहराईयां बढ़ती ही चली जाती हैं।

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  17. कमाल लिखते हैं आप ,
    दूसरो का दुःख देखकर
    आँख तब तक नहीं रोती
    जब तक कोई पीड़ा
    तुम्हारे भीतर
    पहले से नहीं सोती
    ब्लॉग का डिस्क्रिप्शन भी जानदार है , आओ मिल कर दिशा खोजें |
    वाह

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  18. baali saheb , bahut hi sundar rachna ... dil ko chooti hui si ..bus kay kahun .. naman


    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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  19. बहुत सुंदर नज़्म है इस बार ....बहुत गहरे भाव लिए ......

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  20. एक अच्छी कविता। हम अपने अंदर झांकते ही तो नहीं हैं।

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  21. Adarneeya Bali ji,
    bahut sarthak aur tathya parak kavita likhee apne....sundar abhivyakti.
    Poonam

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  22. बहुत बहुत ही सुन्दर .......बधाई

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  23. परमजीतji
    दूसरो का दुःख देखकर
    आँख तब तक नहीं रोती
    जब तक कोई पीड़ा
    तुम्हारे भीतर
    पहले से नहीं सोती

    एक सन्देशयुक्य कविता पाठ आपने लिखा, पढकर मै कुछ गहराईयो मे उतरकर पाया की ये शब्द वास्तविकता के बहुत ही करीब है आपने तरासकर एक सुन्दर शब्दाली बना दी, ये काम आप जैसे शब्दार्थ समझ वाले लेखक ही कर पाते है। मै तो अब इस लेखनी को हमेश पढना चाहूगा।

    आभार/मगलकामनाए
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  24. wah...
    "ab samundar main...."
    lagta hai ki ye samundar bhi ek dil hai koi....

    ...bahut badiya bahav....
    ...is kavita ka !!
    nadi ki tarah !!

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  25. g chat main likha tha"pratiksha kijuye aur tab tak ye link padhiyey"

    to bhai phir pahoonch gaye...
    kuch purani post padh loon zara...

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  26. भावात्मक अभिव्यक्ति!

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  27. duniya mein kitna gam hai apna gam fir bhi kam hai ...................

    kaafi gahrai wali kavita hai kuchh kahna mere liye sambhaw nahi ,,,,,,

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  28. ....इस समुंद्र के किनारे
    रेत में क्या खोज रहे हो
    उसे नही पाओगे।
    समय की लहरें
    हमेशा की तरह उसे बहा कर
    अपने साथ ले गई होगीं....

    अपनी भावनाओं को बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है... इतनी अच्छी रचना हेतु साभार.

    मैंने आप के ब्लॉग को 'मेरी पसंद' में लिस्टेड कर लिया है. और फालो भी किया.
    ...कृपया 'मेरी पत्रिका' पर पधारें......यदि अच्छा लगे तो इसे अपनी पसंद में शामिल कर लेवें.

    धन्यवाद

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  29. बहुत सुन्दर रचना|

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