Friday, October 2, 2009

एक मुर्गे की मौत


ज्यादा पुरानी बात नही है। उन दिनों एक कच्ची कालोनी में रहता था। हमारे पड़ोस मे रहनें वाले एक परिवार ने बहुत मुर्गीयां पाल रखी थी।उन मे कुछ मुर्गे तो बहुत तगड़े थे कि हर कोई उन से बच कर निकलने मे ही अपनी भलाई समझता था।एक बार पता नही कैसे एक बड़े मुर्गे की टाँग टूट गई।वह मुर्गा सब मुर्गे से ज्यादा बलवान था।अब जब उस की टाँग टूट गई तो हमारे पड़ोसी ने सोचा, कि क्यूँ ना इसे बेच दिया जाए। बस फिर क्या था वह उसे बेचनें की बात कई लोगों से की।लेकिन बात बनी नही,क्यों कि वह मुर्गा तीन किलो का था।इस कारण उस की कीमत भी ज्यादा थी। कोई अकेला परिवार उसे खरीद नही सकता था।
मु्र्गे
का मालिक जानता था कि यह मुर्गा ज्यादा दिनों तक जीवित नही रहेगा। इस लिए वह जल्दी ही उसे बेचना चाहता था।

मालिक का अच्छा समय था, या फिर मुर्गे का बुरा समय था। क्योंकि एक दिन बाद ही कालोनी के लड़कों ने आपस में एक क्रिकेट का मैच रख लिया। साथ में एक शर्त भी रख ली। कि जो भी मैच जीतेगा,उसे हारनें वाले खिलाड़ी को मुर्गा भोज देगा।बात तय हो गई और अगले दिन मैच के समय बहुत भीड़ हो गई।कालोनी वाले आपस मे शर्ते लगा रहे थे कि कौन- सी टीम मैच जीतेगी।

आखिर सारा दिन मैच खेला गया, और आखिर में दूसरे लड़्कों ने मैच जीत लिया। लेकिन जो टीम हारी उस टीम में मुर्गा मालिक का बेटा भी था। अब मुर्गे के भोज की तैयारी शुरू हो गई। लेकिन एक समस्या पैदा हो गई कि आखिर इस मुर्गे को मारेगा कौन?सभी ने कहा, कि पराजय वाला ही मुर्गे को मार कर बनाएगा।अब मुर्गे का मालिक फँस गया।क्यो कि उस का बेटा पराजित टीम में था,अतः उसी ने उस मुर्गे को मारनें का काम सम्भाल लिया।

मुर्गे को मारे के लिए मुर्गे का मालिक उसे पंखो से पकड़कर बाहर ले आया।लेकिन मुर्गा बहुत उछल कूद मचा रहा था।आखिर बड़ी मुश्किल से उसे काबू में किया गया।मुर्गा बहुत जोर से चिल्ला रहा था ।उस की गर्दन को काटा हुआ देखने के लिए बहुत से लोग एकत्र हो गए थे। जैसे ही उस की गर्दन काटी गई,मुर्गा तेजी से कूदा और मुर्गा मालिक के हाथ से छूट गया।मुर्गे की गर्दन तो वहीं पड़ी रही लेकिन.... मुर्गे ने बिना गरदन के ही दोड़ना शुरू कर दिया यह सब देख कर वहाँ एक अनोखा तमाशा बन गया।सभी जोर-जोर से हँस रहे थे।लेकिन पता नही यह सब देख कर ,मुझे हँसी नही आई ,बल्कि उन सब हँसी उड़ाने वालो पर गुस्सा आया ।मुझे उस मुर्गे पर तरस आ रहा था।

वह बेचारा मुर्गा एक-दो मिनट तक भागता रहा। और अन्त में गिर गया। पता नही इतने साल बीत जाने पर भी मै उस घटना को भूल नही पाया। इसी लिए उस घटना को यहाँ लिख रहा हूँ। मै नही जानता ,..आपको यह सब घटना कैसी लगेगी?


55 comments:

  1. कटे सिर के बाद भी दस-बीस मिनट तक भागने का रेंज। इतना बड़ा रेंज काहे रख दिए, थोड़ा कम रखते ;)

    लड़वैयों के सिर कट जाने के बाद भी घड़ी दो घड़ी लड़ने के वर्णन वाल्मीकि से लेकर गोंसाईं जी तक ने किए हैं। जाने बिना देखे कैसे लड़ते होंगे ! ...ये मुर्गा भी पुरातन काल में ऐसा लड़वैया रहा होगा। दुर्दिन जो न दिखाए नहीं तो किसी महाकाव्य में स्थान पा चुका होता।..

    वैसे कटने के पहले उसकी टाँग ठीक हो गई थी क्या? नहीं तो दौड़ता कैसे?
    मुर्गों के डाक्टर सिद्धहस्त होते हैं शायद ;)

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  2. kaise ek jivit prani ko kat sakte hai,padhke hi murge par daya aa gayi.kuch hadse dard ki ti chod jaate hai .

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  3. बहुत रोचक और रोमाचित कर देने वाली पोस्ट. आभार
    गाँधी शास्त्री जयंती पर शुभकामनाये

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  4. बाली साहब, जब मुर्गा इतना रोचक था, तो उसकी मीट कितनी स्वादिष्ट रही होगी !!

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  5. ओह, मुझे भी तरस आ रहा है।

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  6. bahut hi dukhad aur dardnak ghatna.............pata nhi aapne kaise dekha hoga agar main hoti to behosh ho jati.

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  7. उस का तडपना सोच कर ही मुझे बुरा लग रहा है, केसे लोग किसी जानवर का मीट खा लेते है....

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  8. लोग मुर्गा, बकरा, भेड़, गाय -भैंस. पक्षी, मछली, सूअर सबकुछ मार-काट कर खा जाते हैं, फिर कहते है बड़ी दया आती है तड़पते जानवरों पर

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  9. padh kar taras to aaya............

    shayad isiliye main pichle bees saalon se shaakahaari ho gaya............

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  10. आज जहाँ एक इन्सान् दूसरे इन्सान को काटने में संकोच नहीं करता,वहाँ मुर्गे के बारे में भला कौन विचार करने वाला है.....लेकिन जो भी है, ऎसा दृ्श्य देखना हमारे तो बस की बात नहीं...

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  11. पढ़ कर मन द्रवित हो उठा।
    पूनम

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  12. बेचारा मुर्गा तो कट ही गया---अब अफ़सोस जता कर क्या कर पाऊंगा?
    हेमन्त कुमार

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  13. पहली टिप्पणी के लिए कुछ सफाई पेश होनी चाहिए, तब मुझे भी तरस आएगा !

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  14. @राव जी आप की बात सही है दस बीस नही दो चार मिनट।गल्ती के लिए खेद है;((

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  15. परमजीत जी,मुर्गे का यही हश्र होना था, मुर्गे होते ही बड़े जीवट है, चलो उन लोगो ने पकड़ के काट तो लिया,नही तो लंगड़ा ही भाग सकता था,बढिया स्मरण है जिजिविषा को लेकर,

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  16. आज कल पोल्ट्री फार्म खोले ही इसीलिए जाते हैं कि मुर्गों को खाने वालों को ये बराबर मिलते रहे.
    "कटना" उनकी नियति ही है, पर अब तो लोग इंसानों को भी तरह -तरह से हलाल कर रहे हैं, पूरी तरह मारते भी नहीं, किस्त दर किस्त मौत दे रहे हैं, लंगडा कर चलने को भी मजबूर किया जा रहा है, उसका क्या..........

    आपकी कहानी से ही शायद कोई सबक ले, पर अब शायद लोग "अंगुलिमाल" भी तो नहीं रहे, अब तो "मालामाल" हैं

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  17. Bali ji, sir kate murge ka dodhna vakai hridaya vidarak raha hoga?!

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  18. me kuch nhi janti blog ke bare me,husband ke sath bedhi in lines ko pdha to dil tdp gya, kash jindo ko markar khane walo ke sath kuch aisa ho jo wo is dard ka ahsas kar sake, samjh sake ki jab ek jiv ka dam niklta hai to kitni taklif hoti hai...
    lekin ye bat un logo ko samjh me nhi ayegi jo lash ko khane me apni shan samjhte hai...

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  19. बहुत दिन बाद आपके ब्लाग पर आयी। कई बार देखा था पोस्ट नहीं होती थी आप कब वापिस आये पता नहीं चला क्षमा चाहती हूँ । आपकी पोस्ट पढ कर मन द्रवित हो उठा । मार्मिक घटना है । धन्यवाद और शुभकामनायें

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  20. कुछ चीजे अंदर तक झकझोर कर रख देती है कहावत सही ही है "मुर्गी जान से गई और खाने वाले को मजा ही नही आया "
    आपके के इस मार्मिक संस्मरण ने मुझे अपनी माँ कि याद दिला दी |माँ ने उनके बचपन में शायद वो ७ या ८ साल कि रही होगी तब किसी गली में मुर्गा कटते देख लिया था वही वो बेहोश हो गई थी उसके बाद सारी जिंदगी
    मुर्गे को देखते ही उनके बदन में पसीना आने लगता और कापने लगती और इस डर से जहा (बहुत काम बाहर निकलती थी )कहीं भी जाना हो पूछ लेती क्या आसपास कोई मुर्गा या उसके पंख तो नही है |बहुत कोशिश कि
    उनका डर भगाने कि लेकिन कोई फायदा नही हुआ |
    जाने कैसे चाव से खाते है लोग ?

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  21. बहुत मार्मिक संस्मरण है।
    यह तो क्रूरता की पराकाष्टा है।

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  22. क्या आपको नहीं लगता हिंसा देख-देख कर हमारे भीतर छुपा पिशाच प्रमुदित होने लगता है....और एक दिन हमें हिंसक होना रास आ जाता है....... आज चारों दिशाओं में यही हो रहा है....जागृत रहें अच्छा पढ़ें, देखें, सुनें....

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  23. बहुत मार्मिक घटना का ज़िक्र किया है....पढ़ कर ही मन भीग गया

    आपने कैसे देखा होगा?

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  24. दुखी हो गयी आपकी कहानी पढ कर ।

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  25. दुनिया में ऎसे लोग भी हॆं,जो दूसरों के तडफने में भी,आनंद लेते हॆ.यह कॆसी मानवता हे

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  26. अति सुन्दर भाई . बधाई!!

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  27. दीपावली पर आपको और परिवार को शुभकामनायें !

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  28. लगभग २० साल पहले ठीक ऐसी घटना से द्रवित होकर मैंने मांसाहार को तिलांजलि दे दी थी

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  29. दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें

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  30. बहुत मार्मिक घटना का ज़िक्र किया है.यह तो क्रूरता है।

    सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
    जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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    ताऊ किसी दूसरे पर तोहमत नही लगाता-
    अपनी खिल्ली उडाकर ही हास्य के रुप मे
    व्यंग करता है-रामपुरिया जी
    आज सुबह 4 बजे हमारे सहवर्ती हिन्दी ब्लोग
    मुम्बई-टाईगर
    ताऊ की भुमिका का बेखुबी से निर्वाह कर रहे आदरणीय श्री पी.सी.रामपुरिया जी (मुदगल)
    जो किसी परिचय के मोहताज नही हैं, आप सभी उनको एक शीर्ष ब्लागर के रूप मे पहचानते हैं।
    रामपुरिया जी ने हमको एक छोटी सी बातचीत का समय दिया।
    आपको भी उस बातचीत से रुबरू करवाते हैं।
    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥


    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
    हे! प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई-टाईगर

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  31. Sar kata huadekh kar bhi log apne ant ko nahi "Pahchaan paye.

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  32. ye to is duniya ke andhe logo ki kartut hai ... jinhe dikhai nahi deta unki jara si der ki bhukh aur maje ke liye koi apni apna sada ke liye kho raha hia ... appka swagat mere blog par and comment Visit Kaun Mujhe Batayega

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