Monday, December 21, 2009

अपने अपने सच....


                                                                                   (चित्र गुगुल से साभार)

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।
अपने अपने सच दोनों के,
दोनों को क्यों तौल रहे हो ?


जो मैने भुगता, उस को गाया।
जो तूने भुगता, उसे सुनाया।
दोनो अपनी अपनी कह कर,
अपना सिर क्यों नोंच रहे हो।


सुन्दर फूलो के संग अक्सर,
काँटे  मिल ही  जाते  हैं।
काँटों मे भी फूल खिले हैं,
कह कर क्युँ , शर्माते हैं।


फूलों पर भँवरें मंडराएं,  या
तितलीयां अपना नेह लुटाएं।
इक दूजे के पूरक बनकर
क्युँ ना ये संसार सजाएं।


बदली के संग पानी रहता।
फूलो संग गंध महक रही है।
शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये,
फिर क्युँकर अब बहक रही है ?


जिस पथ पर चलना चाहता मैं।
उसी पथ के तुम, अनुगामी हो।
आगे रहने की अभिलाषा मे,

क्युँ काँटो को  बिखराते हो।


आओ मिल कर साथ चलें हम।
अपने को कब खोल रहे हो?

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।


38 comments:

  1. सबका सच होता अलग कही पते की बात।
    साथ रहे काँटे सुमन करे नहीं प्रतिघात।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. बहुत सुन्दर रचना---प्रकृति के माध्यम से जीवन का सन्देश देती हुयी।
    हेमन्त कुमार

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  3. bबाली जी बहुत ही अच्छी कविता है
    बादल संग पानी रहता है फूलों संग महक
    शिव शक्ति से बनी सृ्ष्टी से फिर क्यों मुह मोड रहे हो
    बहुत सुन्दर और सही संदेश देती कविता। वैसे भी औरत और पुरुष एक गाडी के दो पहिये हैं मिल कर चलने मे ही सुख है धन्यवाद

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  4. पहली पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया....

    बहुत सुंदर कविता....

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  5. वाह... वाह... बाली साहब!
    बहुत ही दिलकश गजल पेश की है जी!
    बधाई!

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  6. जो मैंने भुगता उसको गाया
    जो तूने भुगता उसे सुनाया !
    दोनों अपनी अपनी कहकर
    अपना सिर क्यों नोच रहे हो ?
    बहुत खूब !

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  7. सच तो मैं भी बोल रहा हूँ --बहुत सुन्दर रचना।

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  8. सच्चा संदेश , दिल की बात सीधे शब्दों में

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  9. शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये..........
    वाह सुंदर

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  10. न बोले तुम न मैंने कुछ कहा ........

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  11. सही बिल्कुल सही : आगे निकलने की अभिलाषा में क्यों कांटे बिखराते हो

    अहिंसा का सही अर्थ

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  12. बहुत लाजवाब रचना है ...... अच्छी लगी .........

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  13. मै भी सच ही बोल रहा हूँ........
    लाजवाब लिखा है आपने.......
    हर पंक्ति एक रिश्ते के आशय को समाहित किये हुए है..

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  14. वाह बहुत सुन्दर रचना,
    बधाई स्वीकारिये

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  15. पसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया

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  16. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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  17. सच बहुआयामी होता है! बढ़िया सोच।

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  18. परम जीत जी बहुत ही सुंदर ओर भाव से भरी है आप की यह रचना.
    धन्यवाद

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  19. सच कहा आपने। सबके अपने अपने सच होते हैं। बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति है

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  20. मन के टूटे तारो को
    छूटे हुए सहारों को

    बादल राग भी
    जुड़ा नही पाता
    बस अब
    एक कतरा
    जिन्दगी कि धूप दे दो |

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  21. प्रिय ब्लॉगर बंधू,
    नमस्कार!

    आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
    से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    Sanjay Bhaskar
    Blog link :-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  22. बहुत सुंदर बाते कही आपने .. अच्‍छी रचना है !!

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  23. बहुत सुन्दर भाव, बाली जी!

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  24. बहुत खूब ...अच्छा है ।

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  25. बदली संग पानी रहता है
    फूलों संग गंध महक रही है
    शिव शक्ति से बनी सृ्ष्टी ये
    फिर क्यूँकर ......

    बहुत सुंदर भाव बाली जी .....!!

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  26. बहुत सुंदर परमजीत जी..

    काट देना ये ज़बान सच तो मुझे कहने दो...

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  27. बहुत सुंदर...आपकी ये कविता हर मकान में भेजी जानी चाहिए..

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  28. बहुत सुंदर कविता....

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