Thursday, September 2, 2010

जाग रे अब जाग रे...


जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।


हर तरफ अंगार हैं,हर तरफ हैं खाईयाँ।
पथ तेरा काँटों -भरा है,मीलों हैं तन्हाईयां।
कोई चलने संग तेरे अब नही यहाँ आयेगा।
तू अकेला आया था, तू अकेला जाएगा।
किससे करें, शिकवे- शिकायत जब बँधा यही भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।


आना-जाना दुनिया मे, कब हमारे वश रहा ?
कौन ले जाता हमें भावों के सागर में बहा ?
ढूँढते रहते है अपना, दूसरों मे ये जहाँ।
आज तक कोई ना जाना, जाना है हमको कहाँ ?
जी रहे हैं जानते नही क्या बँधा है भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।