Thursday, November 10, 2011

खालीपन....

शब्द क्यूँ रूठ कर बैठ गया.
बादलों की छाँव मे ऐंठ गया
हम रात भर तुझे तलाशते रहे
तू ना जानें कहाँ जाके. लेट गया।

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जब भीतर का शॊर गुम हो जाता है।
आदमी खुद से भी बहुत डर जाता है।
आहट सुनने की चाह में आतुर हो कर-
भीतर कुछ मर गया जान पाता है।

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जब भीतर का शोर चुक जाता है।
दुनिया का रंग भी बदल जाता है।
आदमी सोचता है कुछ मगर होता है कुछ
ये दुनिया भी तो  गज़ब तमाशा है।

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6 comments:

  1. अन्दर का मौन सर्वाधिक कोलाहल करता है।

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  2. Sach kaha hai insaan apne andar ke sannate se hi data hai .... Umda gahri Sochi ..

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  3. गहन भावों का समावेश ...भावमय करते शब्‍दों का संगम ।

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  4. भीतर का शोर समाप्त होते ही विचारों की उड़ान कहीं और ही ले जाती है.

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