Saturday, February 5, 2011

एक दिशाविहीन सफर............


फूल बिखरे
मन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।

चल रहे हैं सब मगर
लेकिन पता नही पास है।
पहँच जायेगें कभी
हर एक मन में आस है।

है आस का ही आसरा
तोड़े नही उम्मीद को।
जिसने जगाई आस ये
छोड़े कभी ना साथ वो।

उसके बिना नही सोच सकते
जायेगें हम 
फिर कहाँ।
जानता कोई नही
क्युँ आया है 
वो यहाँ।


एक दिन यही सोचते 
खो जायेगा
अपना जहाँ।

फूल बिखरे
मन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।