Monday, March 19, 2012

मन की तरंग



जब रोशनी होती है
मै तुम्हें भूला रहता हूँ
जब अंधेरा होता है 
तुम याद आते हो।
क्या तुम हरेक को- 
ऐसे ही सताते हो? 
या तुम ऐसे ही आते हो 
और 
ऐसे ही जाते हो ?
बस! यही बताते हो ?
और 
हर बार की तरह
बिना मिले ही
लौट जाते हो ?
तब तो तुम मत आया करो।
मैं प्रतिक्षा करता रहूँगा।
समय तो गुजर जायेगा।


*******************


तलाश तो सभी रहे हैं तुम्हें
अपने आस-पास
लेकिन
अपने भीतर जाने को 
कोई तैयार नही।
डर लगता है-
कहीं "मैं" ना खो जाये।
इस "मैं" ने मुझे -
कहीं का नही छोड़ा।
अजीब है ये "मैं" का घोड़ा-
कोई इससे नीचे
उतरना ही नही चाहता।

*********************




16 comments:

  1. ध्यान तुम्हारे साधन से अब हट न सके।

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  2. अनुपम भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  3. वाह वाह वाह ……………दोनो ही शब्द रचनायें अति उत्तम और विचारणीय्। एक मे मान मनुहार तो दूजे मे सत्य के दर्शन्।

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  4. दोनों रचनाएं कमाल की हैं ...जीवन का सत्य सीधे शब्दों में कह रही हैं ...

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  5. अजीब है ये 'मैं' का घोडा ..
    सटीक प्रस्‍तुति !!

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  6. सही कहा आपने.....
    बाहर तलाशने से वो कहाँ मिलेगा जो भीतर छुपा हुआ है....!!
    सुन्दर रचना और तस्वीर भी....दिल मोहने वाली..!!

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  7. क्या बा...त है ...
    आपका आभार भाई जी !

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  8. बहुत सुन्दर.......
    सच कहा...मैं से बाहर निकले तब तो उसको पायें...

    सादर.

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  9. बहुत सच..इस मैं से बाहर कोई निकलना नहीं चाहता...सुंदर प्रस्तुति..नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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    1. नव संवत्सर की आपको भी शुभकामनाएं।

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  10. इस "मैं" से बाहर निकलना इतना आसान नहीं.

    उत्कृष्ट रचना.

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  11. यही है आज की बात .आज का सच .कुछ अलग बात है कुछ हटके बात है इस रचना में .एक नया राग है इस रचना में

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  12. सचमुच अजीब है यह मै का घोडा । अंदर झांके गहरे तब तो जानें कि मै भी वही हूँ । बहुत सुंदर आध्यात्मिक रचना ।

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  13. 'अहम'ही दिल दिमाग पर 'मै' कहते हुए कब्जा कर बैठा है!...बहुत सुन्दर रचना!

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