Monday, June 4, 2012

तीन अनुत्तरित प्रश्न




अनुत्तरित प्रश्न-१

हर खेल
जीतने के लिये
खेला जाता है।
फिर क्यूँ.....
हम अपने जीवन को
हार कर जाते हैं ?
अंत मे अपने को
अकेला पाते हैं।

अनुत्तरित प्रश्न-२

अपनी थाली का लड्डु
हमेशा छोटा क्यों लगता है?
इंसान के मन में
ऐसा भाव क्यों जगता है ?


अनुत्तरित प्रश्न-३

इन्सान किस लिये आता है?
फिर कहाँ चला ये जाता है?
जीवन -भर दोड़ लगाता है।
दोड़-दोड़ थक जाता है।
कहीं पहुँच नही पाता है।
खुशी मे मुस्कराता है।
गम में आँसू बहाता है।
बेमतलब के इस जीवन को,
फिर भी जीना चाहता है।



11 comments:

  1. बस यही प्रश्न उत्तर ढूढ़ने के श्रम के योग्य हैं..

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  2. इंसान यदि इन प्रश्नों के उत्तर हल कर ले ,,,तो महान आत्मा "ईश्वर" न बन जाए,,,,,

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

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  3. आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 5/6/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |

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  4. इन सवालों के जवाब में उलझा मन ...

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  5. इन प्रश्नों का जवाब तो ज्ञानियों के पास भी नहीं ... इश्वर की माया वो ही जाने ...

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  6. ्कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं।

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  7. जीवन के बहुत से और भी अ्त्तनुरित प्रश्न है..जिसमें हम अकसर उलझकर रहजाते है..

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  8. सचमुच अनुत्तरित....
    सुंदर अभिव्यक्ति....
    सादर।

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  9. दिशाओं पर ताले क्यूँ ? अनुत्तरि प्रश्नों को आगे ले जाने के लिए ताले हटा दीजिये

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  10. आपके प्रश्नों के उतर ....
    आपके प्रश्नों में ही छुपें हैं ....
    बस! येही तो ढूँढना है ...???
    शुभकामनाएँ!

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  11. अगर आपको उत्तर मिलें तो हमे भी बतायें। शुभकामनायें।

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