हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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ये इतना आत्मकेंद्रित दौर है, कि रोने के लिए कोई कन्धा मिलना नामुमकिन सा ही है...
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
दिल से निकले भीगे से जज़्बात....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
अनु
सब अपने मद में मदराये,
ReplyDeleteअपना अपना बोझ उठाये।
Ab dil ke badale dil nahee milta aur
ReplyDeleterone ke liye koi kandha nahee milta.
Anubhav ke bol. Aisee hee hoti ja rahee hai ye duniya.