Thursday, September 10, 2009

वक्त से आगे वक्त से पीछे


बहुत भागा ......
वक्त के साथ हो लूँ।
लेकिन
हमेशा पीछे छूट जाता हूँ।
वक्त से हारने पर,
अपने को सताता हूँ।
लेकिन
अब मैने वक्त के पीछे दोड़ना
छोड़ दिया है।
उस से मुँह मोड़ लिया है।
अब वक्त पर
बिछोना बिछा कर
उस पर लेट गया हूँ।
वक्त जहां चाहता है ,
मुझे ले जाता है।
अब मुझे वक्त नही सताता है।

21 comments:

  1. क्या बात है..बहुत उम्दा!!

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  2. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  3. AB MUJHE WAQT NAHI SATATA HAI..

    wah!

    bahut sundar baali sahab ...

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  4. अब मैंने वक्त के पीछे दोड़ना छोड़ दिया है,
    उससे मुंह मोड़ लिया है।
    बहुत बढ़िया परमजीत भाई, बहुत खूब।

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  5. SACH KAHA ..... VAQT KI PEECHE BHAAGNE SE KUCH NAHI HAANSIL HOTA .... SANAY KE SAATH SAATH, USKE BAHAAV MEIN BAHNAA HI JEEVAN KI SAARTHAKTA HAI ,........ SUNDAR KAVITA HAI

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  6. वक्त को आगे से पकड़ो मित्र! दास बन जायेगा!

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  7. वहुत सुंदर रचना,आप का धन्यवाद

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  8. waah waah...........lajawaab.
    waqt ko kar mutthi mein
    jisko jeena aa gaya
    samjho wo hi zindagi ko
    paa gaya

    behad dil ko choone wali rachna.

    read my new blog--http://ekprayas-vandana.blogspot.com

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  9. बहुत बडिया रचना है वक्त के बिछैने पर तो बैठना ही पडता है कितना भी भाग लो इस से आगे नहीं निकल सकते शुभकामनायें

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  10. कमाल कर दिया बाली.....नहीं...बल्ले बल्ले. यार, बहुत दमदार रचना है. मन नाच उठा. इतनी जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक कविता है की तारीफ के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं. मुझे लगता है यह आपसे हुई नहीं, आप पर उतरी है.

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  11. अब मुझे वक्त नहीं सताता है,
    बहुत सुन्दर !

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  12. कितना सहज हो गया सब कुछ.

    बहुत अच्छे.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  13. Bali ji,
    bahut hee sundar aur arthapoorna kavita hai apakee.badhai sveekaren.
    HemantKumar

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  14. बहुत ही सुन्दर सरल और सहज शब्दों में लिखी गयी कविता----
    पूनम

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  15. barhi mushkil se tippani ka column mila to hindi bhasha ka tool nahi mila. Kavit itni sunder hai ki Hindi pakhwada jo jagah jagah nazar aata hai , main shaamil hote to yakinan pratham puruskar milta. Abhi to sarvotam kavita ki badhayee sweekar kijie.

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