Wednesday, August 4, 2010

दिल लगा के समझे....


दिल लगा के समझे गम है क्या बला
मगर बस मे कहाँ किसी के दिल कभी रहा।


आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।


जिसे मानते थे अपना हमको गरूर था
वही छोड़ हमको चल दिए सदा कोई कब रहा।


सोचा था याद अब ना तुमको कभी करेगें
किस से करें शिकायत दिल बस मे कब रहा।


कहने को जी रहा है हर शख्स यहाँ खुश है
परमजीत उनसे पूछो  कैसे खुश कभी रहा।

16 comments:

  1. अच्छी व भावपूर्ण रचना |बधाई
    आशा

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  2. आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
    हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
    वाह बाली साहब बहुत सुंदर गजल कही आप ने धन्यवाद

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  3. आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
    हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।

    बहुत अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट
    कितनी सहजता से कह दिया कितना कुछ

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  4. आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
    हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।

    आइनो को आइने दिखाते हैं आइने

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  5. दिल लगा के समझे गम है क्या बला
    मगर बस में कहाँ किसी के दिल है कभी रहा

    हा...हा.....हा......!!
    अब इसक किया है तो सब्र भी कर
    इसमें यही कुछ होता है ...........!!

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  6. आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
    हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।-----------------वैसे तो पूरी गजल ही बड़ी खूबसूरती से रची गयी है पर इन पक्तियों की बात ही निराली है।

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  7. बहुत खूब बाली जी,
    आनंद आ गया ! शुभकामनायें

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  8. पहले तो बहुत दिनों बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। अक़पकी रचना दिल को छू गयी
    आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
    हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
    वाह लाजवाब। शुभकामनायें

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  9. जिसे मानते थे अपना हमको गरूर था
    वही छोड़ हमको चल दिए सदा कोई कब रहा।

    बहुत खूब !

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  10. yeh dil gar vash mein kambhaqt ho jaye to itni bhav pun rachanye kon karega .

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  11. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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