Monday, October 25, 2010

बस ऐसे ही......


अब क्या सुनाएं कहने को कुछ नही यहाँ।
जब जान ली हकीकत, जाएगें अब कहाँ ?

बस खेल है खुदा का, वही खेले रात -दिन,
नासमझ, अपना समझ, बैठे थे ये जहाँ।

कोई जगाए, तो बुरा ,हमको बहुत लगे,
कैसी दुनिया मे यहाँ, रहने लगा इन्सां।

बात कोई समझे, ना समझे , गिला नही,
परमजीत कुछ कहना था कह चले यहाँ।

19 comments:

  1. समझ पर बेहतर लिखा आपने !

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  2. 5/10

    सुन्दर बोधात्मक रचना
    दूसरा और तीसरा शेर बहुत अच्छे भाव में है.

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  3. विचारणीय.... पर यही तो होता है....

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  4. AB KYA SUNAYEN KHNEY KO KUCH NAHI YAHAN...........
    SUNDER PANKTIYAN,

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  5. बात कोई समझे, ना समझे , गिला नही,
    परमजीत कुछ कहना था कह चले यहाँ।
    वैसे सही कह चले हैं आप. मैंने तो समझ लिया हा हा... बहुत गहरी बात कह डाली आपने

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  6. बात कोई समझे, ना समझे , गिला नही,
    परमजीत कुछ कहना था कह चले यहाँ ..

    गहरी बात कह दी है आपने ....

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  7. बहुत गम्भीर भावों की सहज अभिव्यक्ति----।

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  8. परमजीत जी, समझना न समझना अपना काम नहीं, अपना काम तो दिल की बात कहना है, कहते रहना चाहिये। धीरे-धीरे सुनने वाले मिलेंगे फिर समझने वाले भी।

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  9. बात कोई समझे न समझे गिला था कह चले यहाँ--- बाली जी आपका गिला तो हमेशा सर आँखों पर रहता है। बहुत भावमय और अच्छा कहा तिलक जी की बात से सहमत हूँ। आप पहले ही बहुत अच्छा लिखते हैं मगर अब रफ्तार कुछ कम हो गयी है। जल्दी पोस्ट लिखा करें। शुभकामनायें।

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  10. प्रभावी
    बस खेल है खुदा का, वही खेले रात -दिन,
    नासमझ, अपना समझ, बैठे थे ये जहाँ।
    वाह
    प्रिय जब प्रेम कुटी में आना

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  11. देवी महालक्ष्मी कि कृपा से

    आपके घर में हमेशा...

    उमंग और आनंद कि रौनक हो ..

    इस पावन मौके पर आपको...

    पावन पर्व दीपावली कि हार्दिक..

    सुभ कामनाये....

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  12. सराहनीय लेखन........
    +++++++++++++++++++
    चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
    मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  13. कोई समझे या नहीं समझे, मगर कहने का दिल हो तो जरूर कह लेना चाहिये. और आपने कह दिया तो बहुत अच्छा किया. कविता के भाव बहुत ही अच्छे लगे.

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