Saturday, November 3, 2012

२८ सालों से...

 

२८ सालों से
न्याय ...........
सत्य को खोज रहा है
नामालूम क्यों 
अब ऐसा लगनें लगा है-
शायद सत्य की भी हत्या हो चुकी है
या फिर वह किसी कालकोठरी में
अंनजान जगह बन्दी बना दिया गया है...
कहीं कोई आवाज नही उठती...
कहीं कोई अकुलाहट नही होती...
अब तो आँखों के आँसू भी सूख चुके हैं....
लेकिन बहुत भीतर अभी भी
रह -रह कर एक टीस-सी उठती रहती है
जो दुस्वप्न बन रातों को जगा देती है..
भटकती रूहें आज भी वैसे ही चीत्कार कर रही हैं..
शायद कोई उनकी की आवाज सुन ले...
लेकिन 

शायद वे जानती नही हैं...
यहाँ अधिकतर बहरे रहते हैं
और जो सुन सकते हैं वो गूंगे हो चुके हैं
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....................................


10 comments:

  1. वाह....
    बेहतरीन अभिव्यक्ति....
    ह्रदयस्पर्शी...

    सादर
    अनु

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  2. बहुत सुन्दर ..ह्रदयस्पर्शी..आभार

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  3. 28 साल पहले हुए उन अत्याचारों को भुला चुके हैं हम सब । कितनी छोटी होती है हमारी याददाश्त । गुजरात दंगों के लिये बार बार नरेंद्र मोदी को कटघरे में खडा करने वाली कांग्रेस अपनी काली करतूतों का प्रायाश्चित कब करेगी ।

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  4. बहुत सुंदर मनभावन प्रस्तुति.

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  5. बाली जी सुन्‍दर प्रस्‍तुति जीवन मे सत्‍य की खोज करना ही मानव का लक्ष्‍य होता है पर वर्तमान मे यह सब इस आधूनिकता मे खो रहा है

    यूनिक ब्लॉग---------जीमेल की नई सेवा

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  6. एक अजब सी हवा बहती,
    कुछ न कहती, कुछ न कहती।

    अश्रु के ढेरों समुन्दर बन गये,
    और खारे मन वहीं पर रम गये,
    जीवनी सब रहे सहती।
    एक अजब सी हवा बहती,

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  7. सत्य ख़तम हो सकता नहीं, भले सुप्त होइ जाय।

    गूंगे अंधे बहरे अपंग हैं, सोये हुए को जगाय।।

    आज के परिदृश्य के अनुसार मनोभाव का सही चित्रण ....

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  8. गहन अभिव्यक्ति .... सत्य कभी न कभी तो उजागर होगा

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