Monday, August 27, 2012

खुशी का राज..



वीरानें दिल मे भी कोई रहता है।
जो हवा का झोंका बन बहता है।
छू के मुझको जब निकलता है-
मुझे साँसों में भर लो कहता है।

चलो किसीको मेरा इंतजार तो है।
कोई भी हो हमें उससे प्यार तो है।
भले  देखा नही कभी मैनें उसको-
लगता है आस-पास कहीं रहता है।

वीरानें दिल मे भी कोई रहता है।
जो हवा का झोंका बन बहता है।

उन्हें शिकायत थी अकेले रहते हैं।
फिर भी खुश है क्यों हम कहते हैं।
खुशी का राज तुम जान लो आज-
तेरी साँसों के साथ वो भी बहता है।

वीरानें दिल मे भी कोई रहता है।
जो हवा का झोंका बन बहता है।


 

Wednesday, August 15, 2012

ये कैसा वतन ये कैसी आजादी......


 



ये कैसा वतन 
ये कैसी आजादी ।
मरती है भूखी ...
जनता बेचारी ।
किसे फिक्र है 
अपने सिवा यहाँ,
क्या देखी कभी है, 
ऐसी लाचारी ।

हरिक शख्स 
परेशां-सा 
यहाँ जी रहा है।
महँगाई, भ्रष्टाचार 
अन्याय पी रहा है।
जो कुर्सी पर बैठा
 है वतन का सिपाही,
मेरे इस वतन का 
कफन-सी रहा है।

जनता को फुर्सत 
कहाँ है  दोड़नें से 
तुम पीछे रहे तो 
ये गल्ती तुम्हारी।
छल से, बल से ,
बस आगे है रहना
वतन को ना जानें, 
कैसे लगी ये बीमारी ।

ये कैसा वतन 
ये कैसी आजादी ।
मरती है भूखी ...
जनता बेचारी ।

Saturday, August 4, 2012

मुक्तक



रात है सुनसान दीपक हवा से लड़ रहा।
कौन जीतेगा यहाँ दूर से कोई तक रहा।
तेरी मर्जी हो तो यह सुबह देखेगा जरूर-
आस में बैठा हुआ कोई बाट तेरी तक रहा।