Wednesday, August 22, 2007

इस टिप्पणी को पढ़कर.........

"ये क्या है?....हें...हें..हें ..."
इस टिप्पणी को पढ़्कर पहले तो मै चौंका,मुझे लगा कि मै कार्टून के जरीए जो कहना चाहता था वह साफ-साफ कह नही पाया या फिर,समझा नही पाया । लेकिन जब श्रीश जी ने टिप्पणी की तो समझ आया कि ,नही भाई हमारी बात समझी गई है । फिर उस टिप्पणी को समझ कर मेरा दिल भी खुश हो गया ।क्योकि इस टिप्पणी के कारण मुझे एक पुराना किस्सा याद आ गया ,जो कभी अपने किसी बडे बुजुर्ग के मुँह से सुना था । आज आप को सुनाता हूँ ...अरे नही! आप के लिए लिखता हूँ ।

बात पुरानी है । दो आदमीयों मे किसी बात पर बहस हो रही थी ।उनको बहस करते देख वहाँ से गुजरने वाले काजी साहब भी रुक गए और उन की बहस सुनने लगे।

" मै कहता हूँ मौला किसी की परवाह नही करता ।" हमिद मिया ने बोला ।लेकिन रफी मिया उन से सहमत नही थे।
वे बोले-"मै कहता हूँ मौला सब की परवाह करता है ।"

"अरे मिया! आप गलती कर रहे हैं उस ने आज तक किसी की नही सुनी ।"

"नही मै नही मानता। वह तो सब की सुनता है ।"रफी मिया अपनी जिद पर अड़े थे।
"जब भी उस से कुछ माँगों वह देता है " रफी मिया बोले।

" वह कुछ नही देता ।"

" क्या तुमने कभी कुछ माँग कर देखा है?" रफी मिया ने पूछा ।
" हाँ मैने कई बार उस से माँगा है वह कुछ नही देता ।" हमिद मिया ने स्पष्ट किया।

अब तक काजी साहब इन की बहस सुन रहे थे । लेकिन अब उन से भी रहा नही गया और वे भी बहस के बीच में कूद पड़े । और लगे उन को समझानें-
" देखो! मोला के बारे में ऐसा मत बोलो कि वह कुछ नही देता..अगर सही तरीके से माँगोगे तो वह जरूर देगा ।"
"काजी साहब ! आप सही फरमा रहे हैं ।..लेकिन हमिद मिया की समझ मे नही आ रहा ।" रफी मिया को अब काजी साहब का साथ भी मिल गया था ।

काजी साहब को रफी का साथ देते देख हमिद मिया और गर्मी खा कर बोला-
" मैं आप लोगों को इस का सबूत दे सकता हूँ.....।"
"अच्छा! तो दो सबूत ।"काजी साहब ने सबूत माँगा ।
"अभी कल ही मैने मौला से सो रूपया माँगा । मैने कहा बच्चे की फीस जमा करानी है..अभी सो रुपये दे दो । दो दिन बाद लौटा दूँगा..मगर उसने नही दिए।" हमिद मिया खींजते हुए बोले।
हमिद मिया की बात सुन कर काजी साहब कुछ चौंकें और रफी की ओर देखते हुए पूछा-
" तुम किस मौला की बात करते हो ?"
"वही! जिस मौला ने सारी दुनिया बनाई है।"
अब काजी साहब ने हमिद मिया से पूछा-
"तुम भी उसी मौला की बात कर रहे हो ना?"
अब हमिद मिया बोले-
" मै तो मौला हलवाई की बात कर रहा था । "

लगता है आज यही सब कुछ हो रहा है । हम कहते कुछ हैं, लोग समझते कुछ हैं । या तो हमें समझाना नही आ रहा या फिर वह वही समझना चाहते है, जो उन्हे पसंद है । एक कविता देखे - " भ्रम"


हम ने उन से

डरते-डरते पूछा-

"क्या आप प्यार करती हैं?"

"हाँ।"

वह धीरे से बुदबुदाई।

"शादि करोगी?"

"हाँ,करूँगी।"

"कब?"

इस बात पर वह कुछ शर्माई..

कुछ घबराई...

और एक कार्ड हमारे हाथ मे थमाके बोली-

"ये लिजिए...भाई।"

15 comments:

  1. सही है!

    वैसे पूर्णविराम के पहले खाली स्थान न छोड़ें तो भी चलेगा।

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  2. आपने बहुत बढि़या लिखा. कितना भी विस्तार दें, यह गुन्जाइश रह ही जाती है कि आप इस मौला की बात कर रहे हैं या उस की. :)

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  3. अच्छा है. हें...हें..हें...

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  4. कई बार क्लिक करने पर भी बस बार-बार शीर्षक ही दिख रहा था। ऐसा क्यूं ये तो हम नही जानते है। :(
    चूंकि हमे कार्टून दिख नही रहा था इसलिये बस यूं ही टिप्पणी कर दी।... :)

    हे-हे-हे :)

    वैसे गुन्जाइश तो हमेशा ही रहती है। :)

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  5. हा हा!!!

    मौला को हमारा नमस्ते.

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  6. कविता और कहानी दोनों मजेदार हैं। :)

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  7. बहुत अच्छा!
    दीपक भारतदीप

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  8. शादी की जगह शादि का प्रस्ताव दे आये तभी मामला बिगड़ गया.

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  9. संजय जी,सुधार के लिए धन्यवाद।

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  10. शिक्षा प्रद कहानी है।कविता भी अच्छी है।

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  11. आप भी अजीब हैं एक टिप्पणी को लेकर परेशान हो गए और एक पोस्ट लिख मारी...वैसे लिखा तो अच्छा है लेकिन आप ऐसे कार्टून बनाए जो सभी को आसानी से समझ आ जाए या फिर उस के साथ कुछ ऐसा लिखे जिस से सभी के समझ आ सके...जैसे आप ने अपनी बात को समझाने के लिए ये मौला वाली कहानी लिखी है ..कविता भी अच्छी है।..

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  12. सतंकौर जी,आप ने शायद ममता जी की टिप्पणी नही पढी।असल मे उन्हें कार्टून दिखाई नही दिया था,सो उन्होने ऐसे ही टिप्पणी कर दी।आप को कहानी और कविता पसंद आई उस के लिए धन्यवाद।

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  13. वाह जी वाह ! खूब कहा !

    लेख व कविता दोनो ही मज़ेदार हैं !

    लगे रहो परमजीत भाई...

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  14. sahi likhaa hai.sab kaa apanaa apanaa najariyaa hotaa hai.

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