Tuesday, November 6, 2007

पछतावा


सिर्फ


माननें से



क्या होगा



जिसे कभी



जाना नही।



ऐसे रास्ते पर


चलने से क्या होगा



जो कहीं पहुँचता नही।



जो भी करें



अंतत: बहुत पछताते हैं



क्यूँकि



हम कभी



अपने भीतर



उतर नही पाते हैं।

5 comments:

  1. सच है. अपने भीतर उतरने की कला में कम ही पारंगत हैं.

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  2. वाह क्या बात कही है आपने. आईने दिखा दिया. और इस आईने के सामने सब ....... खड़े हैं.

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  3. bahut achhi poem hai!
    "हम कभी

    अपने भीतर

    उतर नही पाते हैं।"

    mere traf se-
    क्यूँकि

    हम कभी

    अपने अंदर

    नही झाँकते हैं..!!!

    regards,
    www.rewa.wordpress.com

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  4. कहा गया है कि देखना जीवन के सात आश्चर्यों में से एक है , वही व्यक्ति वास्तव में देखने की क्रिया में पारंगत होता है जो अपने भीतर देखता है ! समीर भाई ने ठीक ही कहा है कि बहुत कम ही लोग इस कला में पारंगत होते हैं ! बधाईयाँ एक बार फ़िर बेहतर प्रस्तुति के लिए .

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  5. मेरा वजूद टूटके बिखरा यहीं कहीं
    मेरी नज़र से ढूँढ लो होगा यहीं कहीं.

    देवी

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