Saturday, November 17, 2007

आज किस बात पर तुझे रोना आया


कुछ तो थी बात तेरी खामोशी में

मिलते वक्त तुझे क्यूँ रोना आया।

तुम तो हरिक बात पर मुस्कराते थे

आज किस बात पर तुझे रोना आया।


याद आई मिलन की रातें तुझे

या फिर वो प्यार भरी बातें तुझे

या कोई टूटा सपना तुझे फिर याद आया।

आज किस बात पर तुझे रोना आया।


कुछ तो है बात तेरे दिल में मगर

बात वो लब पे तेरे क्यूँ कर,आती नहीं

बहुत कोशिश की जरा मुस्काओं तुम

लब पे मुस्कराहट तेरे क्यूँ कर यारा, छाती ही नही।


तूने मुझ को कभी खामोश ना रहनें दिया

इक कतरा मेरी आँख से बहनें ना दिया

मेरी हँसी की खातिर,दुख में भी तू मुस्काया।

आज किस बात पर तुझे रोना आया।


मूझे ये मार डालेगी तेरी, खामोशी

सूनी आँखें मॆं तेरती ये, तेरी बेहोशी।

कॊई बताओं मेरे यार पे कैसा गम छाया।

आज किस बात पर तुझे रोना आया।


4 comments:

  1. अति सुंदर
    आप ने बेगम अख्तर की गयी ग़ज़ल की याद ताज़ा कर दी :
    "एय मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया.... "
    नीरज

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर !
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  3. कभी कभी खुद को ही पता नही चलता कि किस बात पर रोना आया... भावपूर्ण रचना !

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।