Monday, January 19, 2009

शब्दों की मौत

बिखरे हुए अक्षरों को
भावनाओं के धागे में
पिरों कर
बहुत यत्न से तुम आते हो।
फिर एक के बाद दुसरा
सजते जाते हो।
शब्द बन जाते हो।

लेकिन
यहाँ जब कोई इन्सा
तुम्हें देख सुन कर भी
अंजान रहता है।
तब नि:शब्द हो कर
यह शब्द
आँसू बन बहता है।

जब इन आँसुओं को
कोई नही पोंछता।
तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोंट।
तभी होती है
इन
शब्दों की मौत।

14 comments:

  1. 'जब इन आँसुओं को
    कोई नहीं पोंछता।
    तुम्हारे लिये कोई नहीं सोचता।
    तुम्हें भी लगती है चोट्।'
    बहुत सुन्दर! बहुत ही सुन्दर!

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  2. बहुत सुन्दर रचना एवं उम्दा भाव!!

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  3. शब्दों के लिए शब्दों के लिए इतने खुबसूरत भाव ,बेहद ही उम्दा बात कही है आपने ढेरो बधाई कुबूल करें ...

    आपका
    अर्श

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  4. सुंदर भाव, बहुत सुंदर कविता.
    धन्यवाद वाली साहब जी

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  5. वाह....वाह...क्या बात कह दी आपने...........शब्द की मौत का कारण ही बता दिया...!!

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  6. aadarniya baali ji

    bahut hi bhaavpoorn rachna ..

    जब इन आँसुओं को
    कोई नही पोंछता।
    तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचता।
    तुम्हें भी लगती है चोंट।
    तभी होती है
    इन
    शब्दों की मौत।

    ye pankitiyaan , ultimate hai sir.

    bahut badhai

    sir main bi kuch naya likha hai .. aapka pyaar chahiye..

    vijay

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  7. Bali ji,
    Bahut darshanik kavita hai.aksharon aur shabdon ko lekar achchha tana bana buna gaya hai.
    lekin ...shabd to brahma hain ..inkee kabhee maut naheen hotee.
    Hemant Kumar

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  8. 'जब इन आँसुओं को
    कोई नहीं पोंछता।
    तुम्हारे लिये कोई नहीं सोचता।
    तुम्हें भी लगती है चोट्।'

    wah kya panktiya hai

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  9. bahut sahi kaha shabdo ki maut khamoshi ki chadar me lipati hui

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