Sunday, January 25, 2009

जब मन का पंछी.............





जब मन का पंछी आंसमा में
दूर कही उड़ जाता है

तब-तब मेरा मन गाता है।

सुन्दर सपनों का गड़ना,

रात में उन का फिर झड़ना।

इस उठा-पटक के जीवन में,

कब किसको, कहाँ सुहाता है।

जब मन का पंछी......।


फिर भी निर्मित किए जाते,

सुन्दर सपनों के महल यहाँ।

चलते-चलते थक जाते हैं,

बिन बूझे जाना हमें कहाँ?

सबकी अपनी परिभाषाएं,

पर समझ कहाँ कोई पाता है।

जब मन का पंछी........।


हर पथ पर फूल और काँटें हैं,

सबने बस फूल ही छाँटें हैं।

हँस-हँस चले तो संग सभी,

किसनें गम तेरे बाँटें हैं।

पर पथ चलना मजबूरी है,

कौन यहाँ बच पाता है?

जब मन का पंछी......।


अब हँस कर या रो के चल,

सुख-दुख ना पीछा छोड़ेंगें।

जिन को तू अपना कहता है,

मझधार में तुझको छोड़ेगें।

ये तो तेरा हाल है परमजीत

दुनिया को क्या समझाता है?

जब मन का पंछी आसमां में

दूर कहीं उड़ जाता है।

तब-तब मेरा मन गाता है।

11 comments:

  1. वाह!! जब मन का पंछी....बहुत उम्दा भाव. आनन्द आ गया.

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  2. बहुत अच्‍छा लिखा....बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए।

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  3. बधाई अच्छी रचना और गणतंत्र दिवस की।

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  4. बहुत ही सुंदर. इसे तो गाया जा सकता है. बहुत अच्छा लगा. आभार.

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  5. bahut hi achhi rachna.......mann ke bojh,mann ke aaweg ko ubhaarti

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  6. बहुत सुंदर लगा आप का मन का पंछी
    धन्यवाद

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  7. Respected bali ji,
    man kee bhavnaon kee achchhee abhivyakti...sundar rachana.

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  8. गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं

    http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html

    इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्‍ट और मेरा उत्‍साहवर्धन करें

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  9. Bali ji,
    Bahut hee darshanik kavita ...sundar abhivyakti ke sath.badhai.
    Hemant Kumar

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  10. waah kyaa baat hai.....man panchi ke sapne kitne.......man panchi ke parvaaj hai kitni...samjhe naa koi...jane naa koi...!!

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