Wednesday, May 6, 2009

कुछ ऐसे ही.......


हाथ फैला कर आकाश को बाँहों में भरने का प्रयास ना जाने कब से कर रहा था।लेकिन कुछ भी हाथ नही आया।जब भी जानना चाहा कि अब तक के प्रयासो से क्या पाया? तब- तब एहसास हुआ कि सभी प्रयास असफल रहे हैं।पता नही यह मेरे साथ हुआ कि सभी के साथ ऐसा ही होता है। इस बात को मैं नही जानता।लेकिन अब थोड़ा सम्भल गया हूँ।ऐसा मुझ को लगता है।क्युँकि अब बस उतना ही पाना चाहता हूँ जो मुझे मिला हुआ है।........इस लिए अब ऐसा लगता है कि सारा आकाश अब मेरा है।क्युकि अब मै आकाश को साफ-साफ देख पाता हूँ।अब समझ आया है कि प्रयास कर के वह नही भोगा जा सकता, जो बिना प्रयास किए भोगा जाता है।मुझे तो ऐसा ही लगता है।
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जीवन कि दोड़ मे थकान ही हाथ आई है।
सहारो कि अभिलाषाओ मे मुँह की खाई है।
मन जब, बच्चों के मन-सा, कोरा हुआ,
जिन्दगी मुझे देख सो बार
मुस्कराई है।
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23 comments:

  1. परमजीत जी सही कह रहे हैं ज़िन्दगी रोज़गार में कुछ ऐसे ही फँस गयी है

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    चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें

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  2. परमजीत जी,

    इस मुक्तक के रूप में क्या खूब कही है, जिन्दगी के फलसफे को साफ-साफ समझा दिया, छोटे से बंद में।

    दिल को छू लिया।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  3. HAATH FAILAAKAR AAKAASH KO ... YE PANKTI HI KAHAR BAR PAA RAHI HAI .... KAMAAL KI THINKING HAI ISME DABI DABI ..... BAHOT KHUB BADHAAYEE...


    ARSH

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  4. मन जब ,बच्चो ..........सो बार मुस्कराई ...

    क्या लिखा है. गजब का ....दो लाइन में पूरी जिंदगी का सफ़र पूरा करदिया.
    धन्यवाद .

    राजीव महेश्वरी

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  5. जिन्दगी मुझे देख सौ बार मुस्कराई है ...
    वाह क्या बात है -बहुत खूब .

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  6. मन जो सबका बच्चो सा हो जाये,
    सच मानो दुनिया स्वर्ग हो जायेगी।

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  7. बचपन यानि मासूमियत.....ज़िन्दगी यहीं जीती है,बाकी तो भागदौड़ है.....

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  8. zindagi ke falsafe zindagi hi samajhti hai
    kabhi dhoop si to kabhi chhaon si lagti hai

    bahut badhiya

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  9. जीवन कि दोड़ मे थकान ही हाथ आई है।
    सहारो कि अभिलाषाओ मे मुँह की खाई है।
    मन जब, बच्चों के मन-सा, कोरा हुआ,
    जिन्दगी मुझे देख सो बार मुस्कराई है।
    wahh bahut hi under.

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  10. कुछ ऐसे ही का फलसफा पसंद आया. सुन्दर !

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  11. क्या बात है बाली साहेब...बहुत खूब...वाह.'
    नीरज

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  12. achcha lagaa padhna
    zindgi ki taareef haen ki ruktee nahin

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  13. परमजीत जी, आपके विचारों और भावनाओं से पूर्ण सहमति है। इसी बात पर जीवन के संदर्भ में एक कहावत याद आ गयी -
    बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीक्षा।

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  14. पहली २ लाइनों की निराशा को आपने अगली २ लाइनों में दूर कर लिया है...........आशा और निराशामें अक्सर इंसान झूलता रहता है

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  15. ... प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।

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  16. जीवन का अंतिम सत्य जो बहुतों को बहुत बार अंत बेला तक भी समझ नहीं आता, आपने इतने कम शब्दों में समझा दिया.

    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  17. मन बच्चों सा कोरा तो किसी वीतरागी का ही हो सकता है, हाँ व्यावहारिक जीवन में इस स्थिति के जो जितना करीब पहुंचेगा उतना ही मानवता के करीब पहुँच जाएगा.

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  18. aadarniya baali saheb , aapne itne kam shabdo me itni badi baat kah di hai .. aapki lekhni ko mera naman...

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  19. पूरे जीवन का दर्शन इन दो पंक्तियों में लिख दिया है जैसे सागर बूंद में समा गया हो।
    मन जब, बच्चोंके मन-सा, कोरा हुआ
    जिन्दगी मुझे देख सौ बार मुस्कराई है।
    बहुत सुंदर।
    महावीर शर्मा

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  20. is par maine pehale bhi comment diya tha vo kahan gayaa? bahut sundar abhivyakti hai jindagi use dekh kar hi muskrati hai jo jindagi se piar karte hain apko dekh kar uoon hi muskrati rahe ashirvad

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  21. ्परमजीत जी

    सच कहा आपने…कोशिश और उम्मीद ही आदमी को ज़िन्दा रखती है।

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