Monday, January 18, 2010

ये कैसी जिन्दगी है........


अपनी आवाज भी मुझ को, सुनाई नही देती।
ये कैसी जिन्दगी है जिन्दगी, दिखाई नही देती।

नशा है जाम का जिस मे बहक चल रहे है सब,
होश मे मुझको यहाँ जिन्दगी दिखाई नही देती।

हरिक पल मर रहा है जिन्दगी का सामने मेरे,
पकड़ना दूर,मुझको संग भी, चलने नही देती।

खुदा ने दी, खुदा के वास्ते ही थी ये जब जाना,
परमजीत मौत मौहलत जिन्दगी को नही देती।

17 comments:

  1. बहुत बेहतरीन शेर निकाले हैं...वाह!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया ।

    लेकिन अन्तिम पंक्ति में सुधार की संभावनाएं नज़र आती हैं ।

    ReplyDelete
  3. zindagi ki shakl hi kuch aisi ho chali hai.....bahut hi badhiyaa

    ReplyDelete
  4. अति सुन्दर अर्थपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  5. रपनी बात भी मुझे सुनाई नही देती
    ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी दिखाई नहीं देती वाह बाली जी कमाल की रचना है बधाई

    ReplyDelete
  6. परम जीत जी बहुत सुंदर गजल ओर सभी शॆर.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  8. बहुत लाजवाब शेर हैं .......... शुरुआती शेर ने तो कमाल कर दिया ........

    ReplyDelete
  9. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!

    ReplyDelete
  10. Paramjit Ji,
    Bahut achchi ghazal likhi hai
    APNI AWAAZ BHI MUJH KO SUNAYI NAHIN DETI
    YEH KAISI HAI ZINDAGI, ZINDAGI DIKHAI NAHIN DETI
    Surinder

    ReplyDelete
  11. अपनी आवाज भी मुझ को, सुनाई नही देती।
    ये कैसी जिन्दगी है जिन्दगी, दिखाई नही देती।

    परमजीत जी -
    कबीर के दोहे आपके खूब पढ़ते हैं -
    आज आप की रचना पढ़ी -
    बहुत अच्छी लगी -
    शुभकामनायें -

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।