Monday, February 8, 2010

जिज्ञासा

अपने
अधूरेपन की तलाश
मुझे यात्रा पर ले जाती है।

जहाँ वह मुझे
अन्जान रास्तो पर
अंन्जान लोगो के बीच
बहुत खेल खिलाती है।
मेरा तमाशा बनाती है।

लेकिन
मेरी हताशा देख कर
कोई आवाज
मुझे बुलाती है
मुझे समझाती है-
इस जिज्ञासा को
जलाए रखे
अपने भीतर।
देर सबेर रास्ता
मिल ही जाएगा।
जब कोई
अपने भीतर
अपने को पाएगा।

13 comments:

  1. बिल्कुल मिल जायेगा..उम्दा रचना...बधाई.

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  2. जज़्बा तो उम्दा ही है, मिलेगा ही। जारी रहे।

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  3. बहुत सुंदर व प्रभावशाली कविता....

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  4. सही बात है बिलकुल मिल जायेगा गहरी सोच की प्रतीक कविता है। धन्यवाद्

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  5. खोज जारी रखें। अच्छा प्रयास है, खुद को ढूँढने का ।

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  6. इस जिज्ञासा को जलाये रखें अपने भीतर देर सवेर रास्ता मिल ही जायेगा ।
    बहुत सुंदर ।

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  7. प्रभावशाली सुंदर रचना है.
    देर सबेर रास्ता
    मिल ही जाएगा
    जब कोई
    अपने भीतर
    अपने को पायेगा.
    आशावादी सुन्दर भाव हैं.
    महावीर शर्मा

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  8. "इसी अंतर की सच्ची तलाश साधारण मनष्य को कृष्ण,बुद्ध या फिर ईसा मसीह बना सकती है कविता का भाव बेहतरीन है.."
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

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  9. सुन्दर! यात्रा पूर्णता पाने को ही होती है।

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