Monday, August 8, 2011

एक अभिलाषा

बस!
अब कोई सवाल
मेरे सामने
खड़ा मत करना।
क्यूँकि
मैं अब जीना चाहता हूँ।
ये सवाल मुझे ...
कभी जींनें नही देते।
जो आँखों से दिखता है .......
 उसे पींनें नही देते।
जरा सवालों को
मुझ से दूर रखो-
ताकि मैं पीनें का स्वाद
महसूस कर सकूँ।
जीवन जिसे कहते हैं
उस मे ठहर सकूँ।

अब मेरे भीतर
कोई अभिलाषा मत जगाना।
क्यूँकि
हर अभिलाषा की 
प्राप्ती के लिये-
अपने को भूलना पड़ता है।
लेकिन मैं अपने को
भूलना नही चाहता।
बस! मुझे जो दिखता है-
उसी को महसूस करना है।
उसी से
अपने जीवन में रंग भरना है।
मैं सोचना नही चाहता
लेकिन महसूस करता हूँ-
यह भी तो एक अभिलाषा है।
क्या मैं 
इससे भी उबर पाऊँगा।
क्या कभी बिना
अभिलाषा के जी पाऊँगा?

11 comments:

  1. सवालों के जवाबों की खोज में खोती जिन्दगी।

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  2. अंतद्वन्द को प्रतिबिम्बित करते हुए बेहतरीन रचना ।

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  3. यही तो है जिंदगी. आज एक सवाल कल दूसरा. इन्हीं में उलझ जाती है जिंदगी

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  4. मन के द्वंद का शानदार चित्रण किया है।

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  5. ab sahi raah samajh li hai to avashy hi manzil tak bhi pahuchenge.

    sunder abhivyakti.

    bahut dino baad apka lekhan padhne ko mila.

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  6. Jab ek swal ka jwaab pta kar diya,
    jindgi ne phir ek swal khda kar diya...
    Jai hind jai bharat

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  7. बेहतरीन रचना । अब मेरे भीतर कोई अभिलाषा मत जगाना क्यूंकि हर अभिलाषा की प्राप्ती के लिये सब कुछ भूलना पड़ता है। जीwअन के भाग दौड़ को एक अच्छे एन्गल से आपने रेखांकित किया है , बधाई।

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  8. हर किसी के ह्रदय में छुपी रहती है एक अभिलाषा
    आपने जिस प्रकार से उस अभिलाषा को उजागर किया है वो शब्दों से क्या बयां करूँ ये अभिलाषा तो जीवंत है....


    कई जिस्म और एक आह!!!

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  9. जीवन के विभिन्न मोड़ों पर ये सवाल मुंह बाये खड़े हैं ...जवाब इतना सरल भी तो नहीं !

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  10. सुन्दर रचना , सार्थक प्रस्तुति , आभार

    रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं .

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