Wednesday, August 15, 2012

ये कैसा वतन ये कैसी आजादी......


 



ये कैसा वतन 
ये कैसी आजादी ।
मरती है भूखी ...
जनता बेचारी ।
किसे फिक्र है 
अपने सिवा यहाँ,
क्या देखी कभी है, 
ऐसी लाचारी ।

हरिक शख्स 
परेशां-सा 
यहाँ जी रहा है।
महँगाई, भ्रष्टाचार 
अन्याय पी रहा है।
जो कुर्सी पर बैठा
 है वतन का सिपाही,
मेरे इस वतन का 
कफन-सी रहा है।

जनता को फुर्सत 
कहाँ है  दोड़नें से 
तुम पीछे रहे तो 
ये गल्ती तुम्हारी।
छल से, बल से ,
बस आगे है रहना
वतन को ना जानें, 
कैसे लगी ये बीमारी ।

ये कैसा वतन 
ये कैसी आजादी ।
मरती है भूखी ...
जनता बेचारी ।

8 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना………………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. ऐसी आजादी खले, बाली जी के बोल |
    उथल पुथल दिल में मचे, बड़ा चुकाया मोल |
    बड़ा चुकाया मोल, रोल इन शैतानों का |
    तानों से दे मार, गजब शै हुक्मरानों का |
    राशन पानी स्वास्थ्य, बही शिक्षा सड़कों पर |
    अंधकार अति गहन, करे क्या रोशन रविकर ||

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  3. कैसा वतन कैसी आज़ादी ....??

    बिलकुल सही सवाल .......

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  4. यह कैसा वतन और कैसी आजादी । सही कहा बाली जी आपने ।

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