हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।
बढिया वृत्तीय कल्पना के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteक्या खुब लिखा है....
ReplyDeleteहमारा जीवन भी एक बैल की तरह एक वृत्त की रेखा पर ही व्यतित होता है..
मुझे तो बौद्ध-दर्शन का 12 चक्र याद आ गया… बहुत सच लिखा है इतनी छोटी सी कविता में काफी कुछ्…।
ReplyDeleteइसी दौड में सब लगे हैं जिसका कोई छोर नहीं और मौसम है हमारी अनगिनित महत्वाकांक्षायें. बढ़िया है.
ReplyDeletebahut badhiyaa.
ReplyDelete