Thursday, August 2, 2007

वाह ! री माँ ! ये हैं तेरे अपने ?

आज अचानक शोर सुन कर मै घर से बाहर निकला । तो देखा पड़ोस के दरवाजे पर खड़ा एक शख्स हमारे पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी से झगड़ रहा था । उस लड़ने वाले शख्स को हमने पहले कभी नही देखा था । हम अभी सोच ही रहे थे कि वह शख्स हमें देख हमारे पास आ गया । पहले तो सोचा कि अन्दर हो लें । क्योकि पड़ोस का मामला था ,अगर गुप्ता जी देखेगें तो हो सकता है हम से नाराज ही ना हो जाए । लेकिन फिर सोचा इन्सानियत के नाते बात सुनने मे हमारा क्या जाएगा । जब उसने देखा कि हम उस की बात सुनेगे तो वह शुरू हो गया-
" जी देखिए गुप्ता जी, ने खुद ही हमें अभी फोन कर के मेरी मिसेज को धमकी दी है कि हम इधर आए तो ये टाँगे तोड़ देगें । अब हम पूछ रहे हैं कि क्यों बुलाया है तो बात करने को भी राजी नही हो रहे ।"
हम उन्हे जानते तो थे नही सो पहले उन की बात अनसुनी कर के पूछा "आप कहाँ रहते हैं? क्या इन के आफिस मे काम करते हैं?"
वह आश्चार्य से हमे दॆखते हुए बोले-" जी आप हमें नही जानते ! हम गुप्ता जी के जीजा जी हैं ।"
फिर शायद उनको खुद ही ध्यान आ गया । वे स्वयं ही बोले-"आप को कैसे पता होगा आप लोग तो कुछ ही समय पहले यहाँ आए हैं।"
फिर उन्होने अपनी कहानी सुनाई । तब जा कर हमे पता लगा कि ये गुप्ता जी के जीजा जी हैं ।
अब जरा आप से पड़ोसीयों का थोड़ा परिचय कराना चाहूँगा । गुप्ता जी अपनी माँ के साथ अपनी पत्नी और दो बच्चों सहित रह रहे हैं। उस मकान की मालकिन भी उन की माँ है । लेकिन गुप्ता जी कभी अपनी माँ पर एक फूटी कोड़ी भी खर्च नही करते । उन्होने अपनी माँ को एक अलग -थलग कमरा दे रखा है । जिस में ना लाइट है ना ही उन्हें घर के नल से पानी भरने की इजाजत है । उन की माँ अपना खाना खुद ही बनाती है और खुद ही कपडे़ धोती है।
उन की माँ का सारा खर्च यही शख्स जो उन के दामाद हैं,उठाता है । लेकिन गुप्ता जी ने इन के व इनकी पत्नी यानी कि गुप्ता जी की बहन की, घर पर आने की रोक लगा रखी है । उन्होने ही बताया कि महीने का खर्चा देनें इन की पत्नी ही आती है । लेकिन वह घर पर नही आ सकती इस लिए वह अपनी माँ को फॊन कर पास के मंदिर मे बुला लेती है । फोन भी वह पड़ोस के किसी घर में करती है । उस पड़ोसी की जानकारी उन्होने नही दी । आज उन्हें फोन क्यों किया गया इसका भी उन्होने ही खुलासा किया कि आज सुबह माता जी ने दुखी हो कर पुलिस को फोन कर दिया था । जिस कारण से ये गुप्ता जी उन्हें धमका रहे हैं । क्यूँकि गुप्ता जी समझते हैं कि उन्होने यह कदम अपनी बेटी और दामाद के कहने पर ही उठाया है ।
अभी हम बात कर ही रहे थे कि उन की पत्नी यानी गुप्ता जी की बहन भी पहुँच गई । फिर जो होना था वही हुआ । वह सीधा माँ के कमरे में घुस गई । कुछ देर बाद ही झगड़ा फिर शुरू हो गया । सभी अडोस-पड़ोस के लोग देख सुन रहे थे लेकिन कोई बीच मे पड़्ने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था । हम चाह कर भी कुछ नःई कर सकते थे । क्यूँकि हमे उन के बीच जानें कि आज्ञा नही थी । अपने बड़ो की बात टालने की हम मे भी हिम्मत नही है । क्यूँकि उन हमारे बड़ो ने एक बार इन के बीच की समस्या का समधान करने का सुझाव गुप्ता जी की माँ को दिया था । लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह माँ बेटे और पोते-पोती का मोह छोड़्ने को तैयार नही है । वह कहती है कि कुछ भी हो पर हैं तो मेरे अपने । जब मरूँगी तो यही तो मुझे आग देगें । हम भी कुछ नही बोल पाते । बुजर्गों या यूँ कहे बूढों को समझाना बहुत मुश्किल होता है । हम अपने मन मे सोच रहे थे कि-
"वाह! री माँ ये तेरे अपने ।"

2 comments:

  1. Paramjeetjee,mai baar,baar apkaa blog visit kartee rehtee hoon aur lekhanka aaswaad uthatee hoon!
    "Neele,Peele Phool"ye kahanee ab pooree ho gayee hai.Lekin ye kahaneehee hai...haqeeqat nahee!!

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  2. जमाना ही कुछ ऐसा है। पर माँ तो माँ ही होती है।

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