Tuesday, February 3, 2009

खाली मन


अब नही दोड़ता मन
लेकिन थका नही ।
पक कर टूट
जमीन पर आ गिरा है।
जैसे कोई तिन्का
अथाह सागर मे तिरा है।

*******************
जब मन ठहर जाता है
तो शब्द टूट-टूट कर
अर्थहीन बिखरने लगते हैं।
तब कोई भाव नही
खुशी के दीप जगते हैं।

*********************
जानता हु ,ठहरा हुआ मन
फिर एक दिन धक्का खाऐगा।
फिर अपनी राह पर
पहले जैसा चलायमान हो जाऐगा।

********************
(चित्र गुगुल से सभार)

16 comments:

  1. रचना सुंदर है. धक्के या झटके के बगैर अपने आप कुछ हो ही नहीं पाता?

    ReplyDelete
  2. बाली साहब मुक्तक लेखन में आपके लेखनी का क्या कहना ,हलाकि तीनो मुक्तक एक से बढाकर एक है मगर साहब मुझे दूसरा मुक्तक बहोत ही पसंद है बहोत ही बढ़िया भाव है ढेरो बधाई आपको


    अर्श

    ReplyDelete
  3. bahut sundar khali mann ke bhav liye rachanaye badhai

    ReplyDelete
  4. मन की मन ने सही जानी है, अच्छी रची !

    ReplyDelete
  5. वाकई जब मन टूट जाता है, तो शब्द टूटकर ,
    अर्थहीन से बिखरने लगते हैं..........
    मन की दशा की सही अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  6. man ke bhav anant hain aur jab tak khali hai tabhi tak ye hal hai uske baad sahi disha mein hi chalayman hoga kyunki man hai ye.

    bahut sundar abhivyakti.

    ReplyDelete
  7. क्या बात है भाई ...सुभान अल्लाह...वाह...
    नीरज

    ReplyDelete
  8. bahut sundar rachna he.
    जानता हु ,ठहरा हुआ मन
    फिर एक दिन धक्का खाऐगा।
    फिर अपनी राह पर
    पहले जैसा चलायमान हो जाऐगा।
    shabdo ki kataar aour uski manzil dono satik....
    bahut khoob..dhanyvad

    ReplyDelete
  9. Well,FOR THE FIRST TIME TODAY VISITED YOUR THIS BLOG.DEAR YOU ARE GENUINELY SENSITIVE,EMOTIONAL, HONEST AND INTELLIGENT WHILE EXPRESSING YOUR SELF.GREAT/GOD BLESS YOU.
    (MAVARK)

    ReplyDelete
  10. 'फिर अपनी राह पर,
    पहले जैसा चलायमान हो जाएगा'

    इस आशावाद को नमन।

    ReplyDelete
  11. कितना खूबसूरत लिखा है आपने ...
    जब मन ठहर जाता है ..तब शब्द टूट टूट कर ...

    ReplyDelete
  12. बाली साहब, आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं ये शब्द

    ReplyDelete
  13. बहुत खूबसूरत लिखा है।

    काश ऐसा होता कि हमारे सारे शब्द अकड़ की जगह तरल अहसास मे बदल जाते।
    धक्का लगाने वाले भी हमारी चाहतों की बाहों तले उड़ान मे खो जाते।

    धक्का तो सभी सोचते हैं, काश कोई उड़ान भी सोच पाता

    धक्का और उड़ान, इन दोनों के बीच मे हम सभी टहल रहे हैं। बहुत अच्छा है। शब्द धक्का है तो चित्र उड़ान का है।

    कोई धक्का देता है तो कोई उड़ान भरता है।

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।