Saturday, February 14, 2009

मुक्तक माला - १५



किसी के रोकनें से कौन रूकता है?
बिना हारे यहाँ पर कौन झुकता है?
चलन यह आज का नही, बरसों पुराना है,
सदा दुनिया में यारों कौन रूकता है?


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चलने वालों को कब कोई रोक पाया है
बस इतना याद रखो किसने सताया है।
यही चुभन जगाए रखेगी, काली रातों में,
विजय का गीत, सभी ने ऐसे गाया है।


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हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।


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14 comments:

  1. तीनों मुक्तक बेहतरीन. आखिर वाला तो कल अपने यहाँ टिप्पणी में पढ़कर ही वाह करवा गया था. :)

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  2. तीनो मुक्तकों के लिए एक ही शब्द लाजबाब .

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  3. waah saare muktak bahut badhiya,khas kar 3rd.

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  4. बहुत सुन्दर ! अद्भुत !
    "हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
    कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
    तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
    माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।"

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  5. एकदम सही बात है की बिना हारे यहाँ कोई नहीं झुकता !
    और दिखे या न दिखे लेकिन हारते तो सब कहीं न कहीं हैं |

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  6. ati uttam......... sahi hai har baar izhar nhi ho pata magar jazbaat to hote hain na.
    bahut khoob.

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  7. बहुत ही बढिया......
    शुभकामनाओं के साथ

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  8. बहुत ही सुंदर तीनो एक से बढ कर एक.
    धन्यवाद

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  9. तीनों ही मुक्तक बढ़िया हैं. साधुवाद.

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  10. ... बहुत खूब, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।

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  11. behatreen muktak , mazaa aa gaya ek ek muktak ko padhkar , apne aap men sampoorn kahani hai

    dil se badhai sweekar karen

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