Sunday, July 15, 2007

नया सवेरा

अनायास होता है

सब कुछ
हम तकते रह जाते हैं।


कोई अन्धेरा

कहीं से निकल
हम पर लिपट जाता है।

स्वयं से जन्मा ये अन्धकार
अब स्वयं को ही डराता है।

मेरे मन
तुम अब अन्धेरे की बात

मत करना।
ये शनै-शनै मिट जाएगा।
क्यूँकि कोई रात
कितनी भी काली या भयानक हो
रात के बाद
नया सवेरा आएगा ।

4 comments:

  1. सही कहा आपने । आशा है तो जीवन रसमय है....

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  2. paramjeetjee
    aaj aapke rachnaaen dekhkar bahut khushee huee. jaree rakhiye.
    Deepak Bharatdeep

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  3. सही है एक आशावादी रचना. बधाई.

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