Friday, December 21, 2007

मुक्तक-माला-९

१.
मिटता नही कहीं भी कुछ, बदलती बस सोच है।
आदमी का मन भटकता है वहाँ बहुत लोच है।
झूठ को मरना ही होगा, सत्य नही मर पाएगा,
पीढी बदले तो वो बदले,पहुँचें वही जहाँ मौज़ है।
२.
बदला समय, समय ने बदला क्या यही था आदमी।
छोटी-छोटी बात पर , हुआ बेलगाम आदमी।
मर गई शालीनता कहीं, मर गई इंन्सानियत,
खो के आपा, खा रहा है आदमी को आदमी।

2 comments:

  1. ये पीडा आपकी ही नही शायद हम सबकी है.
    अच्छी कविता है.

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  2. अति सुन्दर मुक्तक है।

    बदला समय, समय ने बदला क्या यही था आदमी।
    छोटी-छोटी बात पर , हुआ बेलगाम आदमी।
    मर गई शालीनता कहीं, मर गई इंन्सानियत,
    खो के आपा, खा रहा है आदमी को आदमी।

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