Wednesday, December 26, 2007

एक नयी सुबह का इंतजार

कब से देखता आ रहा हूँ

उन बुढ़ी आँखों में

पानी ही रहता है।

अपनी बहू की कहानी को

खमोशी से कहता है।



ठंड मे ठिठुरती,काँपती-सी,

अपने को फटी शाल से ढाँपती-सी,

लाचार-सी,अक्सर दिख जाती है।

लेकिन ना जानें क्यूँ

मुझे देख मुसकाती है।



लगता है जैसे वह

बहुत कुछ कहना चाहती है,

कह नही पाती।

उसकी कमजोर होती देह देख,

मुझे भी लगता है,

वह भर पेट नही खाती।



हर सुबह,

टूटी खटिया पर बैठी,

करती रहती है,

सूरज निकलने का इंतजार।

शायद कभी सुबह,

उस के लिए भी आएगी।

तब वह उस के साथ,

कहीं दूर निकल जाएगी।



सोचता हूँ,

क्या तब,

इस खाली खाट को देखकर,

उस बहू को कॊई

कहानी याद आएगी?

जो एक दिन,

फिर दोहराई जाएगी।

जब समय की मार से

वह भी हार जाएगी।



समय तो अपनी बात

सभी से कहता,रहता है।

लेकिन

कब से देखता आ रहा हूँ

उन बुढ़ी आँखों में

पानी ही रहता है।

13 comments:

  1. दिल को छू लेने वाली कविता

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  2. आपकी कविता एक ऐसे सच को बयाँ करती है जिसे लोग जान कर भी नही देखना चाहते है।

    दिल को छूती है ये कविता।

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  3. budhape ka dard ek dam sahi bayan kiya hai.muskata chera par kitna dard hota hai uske piche,sab ko ek din ustak jana hi hai.us gali se gujarna hi hai,jaha,ankhon mein pani aur lab par muskan dono eksaath honge.
    hope all bahu will understand this.ye kahani dohrayi jati hai ,aaj uski bari,kal teri bari aati hai.

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  4. क्या तब,

    इस खाली खाट को देखकर,

    उस बहू को कॊई

    कहानी याद आएगी?

    जो एक दिन,

    फिर दोहराई जाएगी।

    जब समय की मार से

    वह भी हार जाएगी।
    #####################
    काश के समय रहते लोग चेत जायें…सुंदर भाव

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  5. आपकी कविता सुंदर ही नही , भावनाओं को उद्वेलित कराने वाली है , अच्छी कविता है , बधाई !

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  6. Gostei muito desse post e seu blog é muito interessante, vou passar por aqui sempre =) Depois dá uma passada lá no meu site, que é sobre o CresceNet, espero que goste. O endereço dele é http://www.provedorcrescenet.com . Um abraço.

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  7. बहुत सुंदर।
    आपकी कविता दिल को छू गई!

    नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
    महावीर शर्मा

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  8. wish u happy new year,ek nayi subah ke saath.

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  9. सच्चाई को वयां करती कविता.......बधाई ,बाली जी
    विक्रम

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  10. बहुत सुंदर । हमारा, आपका, सबका यथार्त बयाँ करती कविता ।

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